पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४५

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. यह सुन कर वह मुस्कुराने लगी और बोली,* अज्डी, वह खाक अक्सौर का काम देगी, जरा उसे अच्छी तरह जलने तो दो। मगर खैर, इस वक मैं तुमसे जिस गुरज से मिलने आई हूँ, अब उसे तुम्हारे आगे जाहिर करती हूं। मुझे उम्मीद कामिल है कि तुम अगर मुझे दिल से प्यार करते होगे तो हर्गिज़ झूठ न बोलोगे।" मैंने जोश में आकर कहा,-4 माहेलका ! झूठ ! अफसोस, अभी तक तुमने मेरे दिलको न पहचान ! अजी, हज़रत ! तुमसे मला मैं कभी झूठ बोल सकता हूँ ! और ऐसी हालत में, जबकितनके दिल | का पर्दा उठ गया हैं और दोनों जानिव से बहकर मुहब्बत का द्य एक दूसरे से मिले मया है।" भेरी बातें सुन कर वह जरासा मुस्कुराई और कहने लगी.-* मैं तुमसे यह जानना चाहती हूं कि तुमने उस वाँदी से, जो कि तुम्हें खाना पहुंचाने आती है, कुछ दिल्लगी की है।" * नाजरीन ! उस पराजमाल के इस सवाल के सुनते ही मेरी रूई काँप उठी और मैंने दिलं ही दिल में यह गौर कर लिया कि हो न हों, | उस वकार लौंडी ने मेरी कोई शिकायत इससे ज़रूर की है। क्यों कि वह मुझे इस बात पर नाराज हो गई थी कि मैं उसके खातिर दिलाराम को नहीं भूल सकता था आखिर मुझे चुप देखकर उसे परी| जमाल ने मुझे सिरसे पैर तक घूरकर देखा और कुछ बेरुखी के साथ कहा,“ क्यो, हज़रत ! बोलते क्यों नहीं। । मैंने कहा,-" साहव ! मैं क्या बोले । क्योंकि तुम ऐसा बेहूदः सवाल करती हो कि जिसका कोई जवाब ही नहीं है। भला, इसे तुम खुद सोच सकती हो कि ज्वे मेरा दिल तुम पर भायल हुआ है। तो फिर मैं उस लौंडो से क्योंकर दिल्लगी करूगा ! . उसने कहा,-- तो क्या उसके साथ तुम्हारी कोई लगावट उहाँ है? मैंने कहा,* लगाउट ! अजी हुज़रत ! मैंने तो अब तक इस