पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/५१

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यह सुनकर मुझे निहायत खुशी हुई कि भला बाद मुहत के हैं अज़ाद तो होऊंगा, फिर अगर दिलाराम जीती है और उसके दिल में मेरी मुहब्बत की निशानी बाकी है, तो वह किसी न किसी दिन मुझे ज़रूर ही मिल जायगी । मैं येही सब बातें सोच रहा था कि उसने मेरे हाथ को अपने हाथों में लेकर कहा,-प्यारे यूसुफ़ ! तुम मुझे भूल न जाना, क्योंकि मैं तुम पर दिल से मुहब्बत. रखती हूं और जब मैं चाहूं। तंव तुम ज़रूर आना ।” मैंने जल्दी से कहा, दिलरुबा ! तुम किसी बात की फिक्कल करो और मुझे अपने नज़दीक ही समझो । क्योंकि तुम मुझे जब याद करोगी में फौरन हाजिर होऊंगा ।” | वह,लेकिन यूसुफ ! इस वक्त जिस काम के लिये तुम्हारे पास आई थी, इस मेले में उसे तो बिल्कुल भूल ही गई थी । वह बात - यह है, कि तस्वीर वगैरह चीजें जो तुम से मैंने पाई थीं वे सब बहुंत हिफ़ाज़ले की जगह में रखने पर भी गायब होगई, बस, इसी बात का सुराग लेगाने मैने अपनी उस चांदी को कहीं भेजा है। ......... ' यह सुनकर मैं कुछ घबरा उठी और बोला,-"क्या रायब होगई ? ओफ ! तो इससे आपको कुछ जियादह नुकसान तो न होगा ! ” | वह,–“नुकसान की बातें न पूछो, लेकिन खैर, अब मैं ज़ियादह देर तक यहां नहीं ठहर सकती ।” इतना उसने कहा ही था कि उस्त इमारत को वही चोरदरवाज़ा फिर धमाके की आवाज़ के साथ खुल गया और वही लौंडी सामने से आती हुई नज़र आई। उसे देखते ही उस परोजमाल ने पूछा,"क्या ये चीजें मिलीं !" • लौडी,—(अहवासी से) जो नहीं, उनुका अभी तक कुछ पता ने लगा । खैर, हुजूर यहां से जल्द भागे, क्योंकि यहाँ का पूरा पता: - किसी ने जहाँपनाह को देदिया है और वे बड़े गुसे में भर कर इसी तरफ रहे हैं।'....।