पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/५०

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  • लखनऊ की कद्र .* | वह,--* लेकिन, यह पाजी औरत कौन थी, जिसने बिल्कुल मेरी

ही सूरत बनाली थी ! . मैं,--- थह में क्या जानू ! बल्कि अब तो मुझे तुम पर भी शक होता है। क्योंकि मेरी अक्ल इस वक्त कुछ भी काम नहीं देती कि मैं तुम दोनों में किसे असली समझें और किसे बनावटी।" .. | वह,-4 असली मैं हूं। मैनेही पहले पहल तुम्हें उस कोठरी में .. देखा था, जिसमें तुमको छोड़कर असमानी गायब होगई थी, मैनेही । तुम्हें आसमानी की कैद, यानी उस मनहूस तहखाने से छुड़ाकर । यहां ला रक्खा और मुझको तुमने तस्वीर वगैरह दिया था।” मैने कहा, इससे मैं यकीन करता हूं कि तुम्ही असली होगी। लेकिन इस कमरे के चोरदरवाजे के खोलने की हालतो सिवा तुम्हारे और तुम्हारी लौंडी के कोई तीसरा शख्स नहीं जानता न १.*. उसने कहा, "हां, अवतक मैं भी ऐसाही समझती थी और मुझे, . : यकीन है कि मेरी नेक लौंडी ने, जिसपर मुझे पूरा भरोसा है, हर्गिज़ । इस कमरे या इसके ताले का भेद किसी पर ज़ाहिर न किया होगा। | मैं,-* तो वह लौड़ी कहां है ? - • वह, मैने उसे किसी काम के लिये कहीं भेजा हैं।" ... मैं, में समझता हूं कि ज़रूरही किसी तुम्हारे दुश्मन ने यहां के | पोशीद्ः हालात जान लिए हैं और वह मेरे खून का प्यासा बन रहा है, .: मुमकिन है कि तुम्हारी गैरहाजिरी में वह मेरी जान लेडाले ।" । " यह सुनकर उसने कहा,--"हां, यह तो सही है। इस वास्तें अब इस मुकाम पर तुम्हारा रहदा सरासर नामुनासिब है । अच्छी, में अभी उस लौंडी कोमेजती हैं, वह तुम्हें यहांसे बाहर कर देगी। यह सुनकर मुझे कुछ खुशी हुई और मैंने जल्दी से पूछा, क्या शाहीमहल के बाहर वह मुझे करदेगी।” वृह बोली, हां, ऐसाही होगा और जब जब मुझे तुमसे मिलने । की जरूरत होगी, वहीं लौंडी बआसानी तुई. यहां ले आएगी ।