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शाहीमहलसरा

आठवां बयान ।

कितनी देर तक मैं उस बेहोशी के आलम में मुतिबला रहा । इसकी मुझे कुछ ख़बर न रही, लेकिन जब मैं होश में आया तो मैने क्या देखा कि मैं एक खाली चारपाई पर पड़ा हुआ है, जिस पर किसी किस्म कह बिछावन नहीं हैं। यह देखकर मैं देर तक पड़ा २ उस कोठरी के चारों ओर देखने लगा, जोकि बहुत ही तंग, गंदी, नमदार और बदबू से भरी हुई थी । उसको तंगी का हाल नाज़रीन सिर्फ इतनी ही बात से समझखें कि उस चरिषुई के हर अहार तर सिर्फ एक २ हाथ जगह और खाली थी। बहू कोठरी चौखटी, पत्थरों से बची हुई, मज़बूत और इतनी तंग थी कि मैं जमीन में भी तन कर खड़ा नहीं हो सकता था । उसको पाटन भी पत्थरों से इस किस्म की बनाई थी कि जोड़ नहीं मालूम होता था ! उसमें सिर्फ एक ही दरवाज़ा था, जिसकी जांच मैने उठकर की तो माझूम हुआ। कि वह् लोहे के पत्तरों से जुड़ा हुआ है और निहायत मज़बूत है। मैंने उसके खोलने के लिये बहुत ही कोशिशें कीं, पर सववेक कुई क्यों कि वह बाहर से बंद था । उस कोठरी में एक ताक पर एक मनहूस चिराग जल रहा था, जिसका उजाला इतना धुंधला था कि जो इस संग कोठरी के लिये भी धूरे तौर पर काफी न था ।

ग़रज़ यह कि मैने खाट से नीचे उतर कर उस कोठरी की भरपूर जांच की, पर वह इतनी संगीन बजी हुई थी और उसका दरवाज्ञा इतना मज़बूत था कि मेरी अक्लं हैरान होगई और मेरी हिम्मत ने मेरा सपथ जेड़ दिया!फिर जमीन की जांच करने के लिये मैंने बह चारपाई उठानी चाहीं, पर वह बहुत कुछ जोर करने पर भी अपनी जगह से न हिली; क्योंकि वह लोहे की थी और उसके चारों पाये जमीन में गाड़े हुए थे और जमीन पत्थरों से पटी हुई है।

ग़रज़ यह कि जब मैंने वहां से अपने भागने की कोई सूरत न देखी तो लाचार हो,उसी खरहरी खाट पर आकर में पड़ रहा और और पड़ा पड़ा देर तक अपनी बदकिस्मत को कोसता रहा फिर