पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
लखनऊ की कब्र

यकबयक मेरे दिल में यह बात आई कि पेश्तर मैने जब कि पहली मर्तयः मैं होश में आया था, इस दरवाजे पर मैने आसमानी को देखा था । तो क्या वह मरी नहीं है ! या उसकी रूह इस दोजरवरीखे। कैदखाने में मेरा मुंह चिढ़ाने और सताने आई । और यह भी तो हो । सकता है कि यह मुकाम दोजख़ का कोई हिस्सा हो, और मैं मरकर अपने गुनाहों की सज़ा पाने के लिये यहां पर लाकर रखा गया। होऊ ! मुमकिन है कि बात ऐसी ही हो और यही वजह है कि मुझे आसमानी की रूह दिखलाई पड़ी !

लेकिन देर तक इन्हीं बातों पर ग़ौर करने से घेरा जी घबरा गया । और देरतक मैं बदहवास पड़ा रहा। फिर मेरा ख्याल कुछ बदला और मैंने अपनी उन चीज़ों को सम्हाला, जो मेरे साथ थीं। मैंने देखा कि मेरी कुल चीजें मेरे पास हैं, इसलिये यह कभी मुमकिन नहीं है। कि मैं मर गया होऊं बेशक मैं ज़िन्दा हूं और इस मनहूस जगह में फिर कैद किया गया हैं ! इसलिये यह भी मुमकिन है कि दरअसल वह आसमानी या उसकी रूह हर्गिज़ न रही होगी, सिर्फ मेरे ख्याल ने उसकी सूरत गढ़ ली होगी । और यह भी तो मुमकिन है । कि आरभी अभी तक जीती हो ! लेकिन नहीं, उसके मरने या मारे जाने में कोई शक नहीं है। बस यातो वह सिर्फ मेरा स्याल ही ख्याल था, या आसमानी की रूह मुझे सताने आई थी ।

या इलाही ! उस कम्बख्त की रुह का ख्याल होते ही । मेरा । कलेजा दहल उठा और मैं दिल की कमज़ोरी के सबब देर तक बदहवास पड़ा रहा।

यह आलम कबतक रहा, इसको ठीक ठीक अन्दाज़ा तो मैं नहीं कर सका, लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूं कि घंटों तक मैं उसी उधेड़बुन में लगा रहा। इतने ही में उस तंग कोठरी में नमालूम किंधर से हवा का एक ऐसा झोंका आया कि यह मनहूस चिराग गुल हो गया और अंधेरा होते ही मेरी खाई ज़ोर से हिली ।

इस अजीब कैफ़ियत के देखते ही में एक दम से घबरा गया और