पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/५८

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  • लखनऊ की कुत्रे * भनहरुख जगह से निकल सके, तो मैं अपनी ज़िन्दगी से नाउम्मीद होकर चहाँ धरती में बैठ गया और देर तक तरह तरह के खयालों में उलझा रहा। कितनी देर तक मेरी यह हालत रही, यह तो अब मैं नहीं बतखा सकता, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि मैं बहुत देर तक बदहवास रहा।

...इतने में मेरे कान में एक पटाखे की आवाज, गई, जिससे में चौकन्ना होकर उठ खड़ा हुआ और इधर उधर देखने लगा। कुछही देर बाद मैंने रोशनी देखी, जिससे मेरा बिखरा हुआ दिल बटुर कर इकट्ठा हो गया और मैंने देखा कि-आह ग़ज़ब, सुरंग केदचने पर हाथ में जलता हुआ पलीता लिये वही शैतान की नानी आसमानी खड़ीहै।

  • : उस बच् शकल और बदजीत चुस को देख कर मेरी रूह कपि

उठी और उससे चार आंखें होते ही मैंने अपनी गर्दन झुका, ली। मुझे जमीन की तरफ निहारते हुए देख कर आसमानी शेरनी की रह गरुज उठी और कड़क कर बोली,--** कंबख्त, दोज़खी कुचे ! ... तु अझी तक जोता है ! अफ़सोस, मौत का निवाला होकर भी तू यहाँ तलक जीता जागता श्री पहुंचा। उसकी कड़ी आवाज़ सुन कर थोड़ी देर के लिये मेरा सारा बदन, सनसना उठा और मैं जमीन की तरफ देखता हुआ चुपचाप खड़ा रहा । मुझे चुप देख कर वह शैतान बुड़ी फिर गरज़ उठी और बोली, **पाजी नामाकूल ! अभी तक दू जी रहा है ? ” अध तो मैने भी अपने दिल को मजबूत किया और उसकी ओर देख कर कहा,-- * : * अदजात, बुड्डी मैं भी तुझसे यही सवाल करता हूं कि कूभी ताँ मैरं गई थी; पर मर कर तू दौख से क्योंकर लौट आई ? - .: यह सुनकर वह झल्ला उठी और मेरी ओर बेतरह घूरकर बौली, बदशात लौंडे !मैं तेरा खून पीने लौट आई है, साकि । अपनी शक्ति का मत चवखे और इस बुनियां में जियाह दिन तक