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शाहमहसरा

चढ़ा सकूं, क्योंकि अगर ज़रा भी इसने करवट ली तो उलट जायगी; इसलिये तुम इसकी पतवार पकड़लो तो मैं इसे खेकर किनारे पर ले चलूं।"

इतना सुन और पतवार को पकड़ कर मैंने कहा,--"बहुत खूब, अब आप किश्ती को किनारे पर लेचलें और मेरी जान बचाने का सबाब लें। खुदा आपको इस नेकी के एवज़ में वह दौलत बख़शेगा, कि जिसका ययान करना मेरी ताकत से बाहर है।"

नाज़रीन! वह काफूर का दूसरा डेला भी बुझ गया था, इसलिये मैने यह नहीं जाना कि मेरी जान बचानेवाला औरत है या मर्द, क्योंकि उसने दो एक बातें इतने धीरे धीरे की थीं कि मैं उसकी आवाज़ से कुछ भी नहीं जान सका था कि वह औरत है, या मर्द। ।

गरज़ यह कि थोड़ी ही देर में वह किश्ती किनारे लगी और उसी अजनबी मेहरबान ने अपने हाथों का सहारा देकर मुझे पानी से बाहर किया । उस वक्त भी खूब ही अंधेरा था।

मैं पानी के बाहर तो हुआ, लेकिन मेरा सिर चक्कर खा रहा था इसलिये मैने अपने दोनों हाथों से उसको ज़ोर से पकड़ लिया और धीरे धीरे इतना कहा,--"अय, मेहरबान, दोस्त ! तू मुझे सम्हाल,क्योंकि मुझे चक्कर आ रहा है और मैं ग़श खाकर गिरा चाहता हूं।"