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शाहीममहलसरा

मैने तड़प कर कहा,--"दोस्त !ऐ! इस बदकार दुनिया में क्या मेरा भी कोई दोस्त है ? नहीं हर्गिज़ नहीं। किसी जमाने में मेरा भी एक दोस्त था, लेकिन अब वह भी न रहा। आह ! दिलाराम ! सिवा तेरे मैरा क्या और भी कोई दोस्त है ?

ऐ, यह क्या ? इतना मैने कहा ही था कि मेरे चेहरे पर एक बूंद पानी कहीं से टपक पड़ा, जिसे मैने सिर उठा कर देखा और जांचा तो मुझे ऐसा जान पड़ा कि वह पानी की बूंद शायद उसी नकाबपोश के आंसू की थी। यह देखकर मैं बड़े शशपेज में पढ़ा कि यह औरत कौन है जो मेरी इतनी खिदमत कर रही और मेरे लिये आँसू बहा रही है। लेकिन मेरी समझ में कुछ न आया । इतने ही में उस औरत ने उठकर ताक पर रक्खी हुई एक शीशी उतारी और उसमें से कई बूंदें मेरे मुंह में टपका , जिनके पड़ते ही एक बेर तो मैं कांप गया, फिर थोड़ी देर में मुझे गहरी नींद आगई। ... फिर नींद खुलचेयर मैने अपने तई जांचकर देखा तो मुझे यह । जान पड़ा कि पहिले के बनिस्बत अंध मेरी तबियत कुछ सही है सर दर्द भी कम है और तमाम बदन में कुछ ताकत भी मालूम देती है। यह जानकर मैं निहायत खुश हुआ और अपने मालिक का शुक्रिया अदा किया ।

इसके बाद धीरे धीरे मैं उठकर खा से नीचे उतरा और उसी कोठरी में, जिसमें में था, टहलने लगी । वह कोठरी १२ हाथ लम्बी, ' चौड़ी और क़रीब छः हाथ के ऊंची थी। उसमें सिर्फ एक ही दुर्वाजा था, जोकि लकड़ी का था और बाहर से बन्दं थी। उसमें उजेला और इवा आने के लिये पूरी उंचाई पर हर चुहार तरफ तीन ३ मोखे बने चुप थे ! गरज़ यह कि यह कोठरी साफ़ थी और इसमें सिवाय मेरी चारपाई के अगर कुछ था तो पानी की सुराही, गिलास और कुछ दवाइयां

उस वक्त मुझे शिद्दत की भूख लगी हुई थी, लेकिन वहाँ पर ऐसी कोई चीज़ मौजूद न थी, जिसे खाकर मैं दो बूंद पानी पीता।