पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/६६

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• * इस्खनऊ का कृञ *। लाचार में आकर चारपाई पर लेट गया और हर हर तरफ़, अपने खयाली घोड़े दौड़ाने लगा ।.... सोचते २ पिछली सब बातें मेरे ख्याल में थाई और मैने समझ लिया कि जिस शख्स ने उस तालाब से निकालकर मेरी जान अचाई, वह और यह नकाबपोश औरत, जो अब मेरी खिदमत कर रही है, ये दोनों एक ही शख्स हैं। गुरज़ यह कि इन्हीं बातों पर मारे करते करते मेरा सिर फिर चक्कर खाने लगा, इसलिये मैंने आंखें बन्द कर सोने का इरादा किया। लेकिन नींद न आई और देर तक मैं पट्टा पड़ा तरह तरह के ख्याली पुलाव पकाने लगा। इतने ही में उस कोठरी के दर्वाजे के खुलने की आहट मैंने पाई और सिर उठाकर देखा तो जान पड़ा कि हाथ में पक रका लिए धही नकाबपोश औरतं आरही हैं। **: : | शायद, उसने भी मुझे सिर उठाकर देखते, देख लिया होगा, ...इसलियें हाथ की रकीबी एक. ताक पर रख और मुस्कुराकर कहा, . *खुदाके फजलसे आज मैं तुमको बहुत अच्छी हालत में देख रही हैं। सुनकर मैं उठकर पलैग पर बैठ गया और बोला,"बैशई खुद बंद करीम का मैं दिल में शुकुरगुजार हैं कि जिसने तुमको मेरी मदद के लिये भेजा ।” | मैं बह बात कहीं आया है कि उस कोठरी मैं सिवा मेरी चारपाई के और कोई कुर्सी या मुद्दा न था, इसलिये वह नकाबपोश औरते जमील ही में बैठगई और बोली, कुछ भूख मालूम देती है ?* मैने कहा, आज मैं घन्टों से मारे भूख के तड़प रहा हूँ।" .. .वह बोली, खर, तो, लो, हाञ्जिर है।” थों कह कर वह उठी और ताक पर से रकाबी लाकर उसने मेरे सामने रख दिया और कहा, यह शोरुबा है और यह इल्चों है छलके आने से सदन में बहुत जल्द ताकृत आवेगी।" । 'मलव यह कि पहले तो चुपचाप मेंने खान्छाया, जिससे .. . -- - -- हाम ... ... .