पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७२

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ग्यारहवाँ बथन । .. कुछ देर के बाद जब मैं होश में आया तो क्या देखती हैं कि अब वह खुशबू, जिसकी मस्तीः स्से मैं बेहश होगया था, कोठरी में न थी, बल्कि उसकी जगह पर दूसरी ही किस्म की खुशबू भरी हुई थी, जससे मेरे दिल की कली खिल गई और मैं दो एक अंगड़ाई ले कर पलंग पर उढ़ कर बैठ गया। बैठते ही मैंने जो चारों तरफ नज़र घुमाई तो मैं क्या देखता हूं कि उन चारों धुतलों के हाथों में श्रीयों तल्वारे मौजूद हैं, एक तरफ के पाई पर गरमागरम खाना, सुही गिलास और शराब की बोतल रखी हुई है और मेरे सिरहाने के तकिए के : पास एक लपेटा हुआ काशज़ क्खा हुआ है। . यह सब देख कर पहिले मैंने उस कागज़ को उठा लिया और खोल कर पढ़ा। उसमें यह बात लिखी हुई थी,

    • यूसुफ !

“तुम घबरअरे, नहीं । जब तक तुम्हारी बदकिस्मती के दिन पूरे नहीं होते, तब तक तुम इसी जगह रहो। तनहाई की हालत और कैदखाने की तकलीफ से बेशक तुम्हारी तथीयत बहुत घबराती होगी, लेकिन किस्मत के खेल में किसी का चारा नहीं चलता।

  • इन पुतलों में से सिर्फ एक पुतले की तरफ तुम जाना, क्योंकि , तुम्हारे काम की चोर वही है। बाकी के तीनों पुतलों की ओर कभी

भूल कर भी न जाना, चरना तुम्हारे ज्ञान की खैर नहीं। आज तुमने बडी दिलेरी, बड़ी बेवकूफी और जल्दबाज़ी काम किया कि इन पुतलों को तुमने छेड़ा । मौत के मुंह में तो तुम अाज पड़े हो चुके थे, | लेकिन खुदा के फ़ज़ल से बच गए। । “तुम इस परचे से पूरब, पच्छिम, उत्तर और दक्खिन का हाल जानोगे । जिस तरफ तुम्हारी सिरहाना है, वह पूरब हैं । बस इतने । ही से होम पच्छिम, दक्खिन, और उत्तर का हाल जान लो । इस्ले । मतलब मेरा सिर्फ यही है कि तुम पूरक तरफ वाले पुतले से ताक