पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

  • शाहीमहलसरा * दखने वाली सुरंग में जाना,सीढ़ी से उतरते ही दाहिने हाथ की तरफ ज़मीन में एक मोमबत्ती और दीयासलाई भिलैगी। उससे तुम रौशन कर लेना और सोढ़ी के सामने की दीवार में जो खरगोश का . चेहरा बना हुआ है, उसकी गर्दन को तोन और घुमाना, जिसक भतीजा यह होगा कि वहाँकी दीवार को एक पत्थर हट जोगा और तुमको एक और कोठरी में जाने की राह मिल जायेगी । उस कोठरी में हम्माम है, वहाँ पर तुम अपनी ज़रूरत की कुल चीजें पाये और मामूली कम से फरागतद्वैहो सकोगे।
  • यह बड़ी खुशी की बात हुई कि तुमने इन सुरंगों में जाने के तरीके खुद ब खुद न लिये, इस बास्ते अब ज़ियादह लिखने की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी अख़ीर में तुम्हें चिंता दिया जाता है कि शौर सुरंगों में जाने का कभी भूल कर भी कृद् न करना । मुझे मुनासिब था कि मैने पहिले ही में तुम्हें आगाह कर दिया होता, लेकिन खैर फिर भी मेरी मुस्तैदी काम आई और तुमको उन तीन सुरंगों में जाने पर भी बड़े भारी खतरे से बचा लिया, जिसकी तुम्हें कुछ भी खबर नहीं है ।
  • ठीक वक्त पर तुम्हें जान पहुंचता रहेगा, लेकिन जब तक तुम्हारी बदकिस्मती के दिन न बीतेंगे, तुम किसी शख्स की सूरत देख सकोगे, लेकिन इससे तुम घबराना नहीं । अगर किसी चीज़ की जरूरत होती हम्माम मैं कलम, दीवात और कागज़ भी मौजूद है, लिख कर वहीं उस परचे को डालदेना तो तुम्हारी ज़रूरत फ़ा होजायगी।

. :.:.., किम, तुम्हारी मार मैने इस खत को तीन चार मर्तबः स्खूब गौर से पढ़ा, जिससे मेरी तबीयत तो कुछ ठिकाने धुई, लेकिन फिर भी तरतूद ने मेरा साथ न छोड़ा और में तरह तरह के ख्यालों में उलझ गया। | किस्सह कोताह, मैं उस खत के लिखे मुताविक सुरंग खोल कर हम्मान में गया और मामूली कामों से फ़ारिग हो और गुसल करके :