पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८५

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4: शाहीमलसर है। मेरे साथ चले आओ 1 ) | इतना कह कर वह आगे हुई और मैं उसके पीछे पीछे चला । यहाँ पर इतना कह देना मैं मुनासिब समझता हूं कि वह रंगीली औरत भी वैसी ही रास्ता थी, जैसा कि उसने मुझे सवाँरा था और उसके हाथ में भी एक वैसा ही मोरछ्ल था। मतलब यह कि वह औरत मुझे अपने हमराह लिए हुई उस् कोठरी से निकल कर उस कमरे में आई, जिसमें पलंग पर मैंने अपने को होश हवास में गया था। वहाँ आकर उसने एक अलमारी खोलकर अतर निकाला ] श्राप मढ़ा और मुझे भी लगाया, फिर एक खंजर मेरे कमरबंद में खोसे और दूसरा अप लगा, आलमारों बंद करके मुझे साथ लिए हुई उस कमरे से बाहर हुई । बाहर कर उसने कमरे में ताला बंद कर दिया और मुझे साथ लेकर एक अंधेरी कोठरी में पहुंची। वहाँ पहुंच कर उसने उस कोठरी का दरवाज़ा भी बंद कर दिया और मेरा हाथ पकड़े हुई सीढ़ियाँ उतरने लग | अंदाज़न बीस सीढ़ियों को तय करके वह जब बराबर की ज़मीन में पहुंची, तब उसने दियासलाई रगड़ कर रौशनी की। उस वक्त मैने उस परीपैकर के साथ अपने लाई एक मासूली । कोठरी में पाया। वहां पर वह मेरी ओर देख कर हंसी और कहने. लगी, क्यों हज़रत ! आपने अपने मज़ाक का जवाब भरपूर पाया था नहीं ! क्या आपने ऐसी भी मई दुल्हिन कहीं देखी है, जो अपने मनचले दूल्हे को इस तरह बात की बात में भर्द से औरत बना डालें ! .. यह कह कर वह खिलखिला एड़ों और मैं भी हंस पड़ा, लेकिन मैं दिलही दिल में निहायत शर्मिन्दा हुआ और सोचने लगा कि यह तबीयतदार रंगीली औरत कौन है, जिसने मेरे साथ ऐसी बृद्धब 'दिल्लगी की। लेकिन, उस वक्त इन बातों पर गौर करने का मौका मिला, क्योंकि उस औरत ने फौरन ही यह कहा,-- . * तुमचमन ! मैं तुमसे यह अदा कर चुकी हैं कि आज तुम्हें