पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८६

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  • पॐ ॥ 4 *

कोई अजय तमाशा दिखाऊगी; सो पहिला तमाशा तो यही दिखलाया कि तुम्हें खास्सो नाज़नी बना डाला। 'मैने कहा,–' हां ऐसा तो तु करही गुज़री,--योनी तुमने मुझे अपनी लच्छेदार बातों में उल्लू बना कर मर्द से खासी श्रीरत बना डाली !! उसने कहा,---* खैर, यह तो सिर्फ तुम्हारे मज़ाक का जवाब मैने दिया, और जिस तमाशे को मैं तुम्हें दिखलाना चाहती हूं, वह बादशाह सलामत के रूबरू होगा।” मैने घबरा कर पूछा,--*क्या, नीरुद्दीन हैदर के दरबार में?” लंसने कहा,“हो वहीं पर! पंस, मैं तुमको वहीं ले चलती हूं." यह सुन कर मैं एक दम घबरा गया और बोलाउँठा,--*अल्लाह ! यह तुम कह क्या रही हो ! तुम मुझे बादशाह के दरबार में से चल्होगी ? । उसने कहा,--* हां ! और इसमें हर्ज ही क्या है ! अब तो तुम खाली औरत बन रहे हो ।” मैने कहा, लेकिन अगर बादशाह ने मुझे पहचान लिया, तो! ' यह सुन कंर उसने एक क दम आईने के ऊपर का परदा. हुडा दिया और मुझे उसके रूबरू लेजा कर खड़ा कर दियई और यो कहा,“ लो, अब तुम पहिले खुद तो अपने को पहचान : लो, तब बादशाह के पहचानने की दहशत करना । १ • हकीकृतं, बहुत कुछ गौर करने पर भी मैं अपने तई आप न पहचान सका और उस रंगीली नाज़नी में मुझे ऐसी खूबसूरत औरत बनाया था कि मैं अपने हुस्न पर अप दीवाना होगया । गरजु यह कि मैंने जोश में आकर उस औरत से कहा,-* अल्लाहआलम ! तुम तो अजीब औरत हो !" उसने कहा,-- अल्लाह, यह नाज ! इतना सितम न ढाहो !”.. मैंने कहा, जी हज़रत ! जय कि आपके थनाए हुए, अपने