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शाहीमहलसरा

में था उस कमरे के बाहर बड़े कमरे में एक बहुत उम्दा और वेश- कीमती तख्त बिछा हुआ था और उसके आगे एक संग्रह का गोल मेज़ था। उसके तीन ओर कई कुर्सियां रखी हुई थीं।

इन सर्व चीज़ों के देखने में मुझे बहुत ही कम वक्त लगा, क्योंकि बड़े कमरे में कई अंगरेज़ों के साथ बादशाह सलामत आगए । उस वक्त वे भी अंगरेज़ी लिबास में थे । सो आते ही उन्होंने अपनी अंग्रेज़ी टोपी उतार कर मेज़पर रखदी और तख्त पर आ बैठे। उन के बैठने के साथ ही चिकें हटाकर हम सब बाहर गए और तख्त के पीछे मोरछल लेकर कतार दधेि खड़े हो गये ।

फिर बादशाह के इशारा करने पर वे अंग्रेज़ भी अपनी अपनी टोपियां उतार कर कुर्सियों पर बैठ गए और खवासों ने लाकर मेज़ पर तरह तरह के खाने चुन दिए ।

मैं उन मोरङल-वालियों के साथ, उन्हीं की तरह मोरङले लिए हुए आगे कदम रखता और हाथ हिलाते हुए पीछे हट आता था। एक घंटे के बाद जब बादशाह अंगरेज़ों के साथ खाना खा चुके, तब शराब चली और इसके बाद मेज़ साफ़ करके उस पर गुलदस्ते, पानदान और इलाइची वगैरह की तश्तरिया चुन दीगई। शराब और प्याले भी लाकर रखे गए।

फिर कई तवायफ़ें हाज़िर की गई और उनका नाचना गाना शुरू हुआ। बीच बीच में शराब जारी थी, और सबसे ज़ियादह प्याले बादशाह सलामत ही ख़ालीं करते थे।

योहीं यह मजमा आधी रात तक रहा और जब बादशाह नशे से बदहवास होकर तख्त पर लेट गए तो गाना बजाभी मौकूफ़ हुआ, रंडियां अपने भडुवों के साथ रुखसत कर दीगई और अंग्रेज़ भी अघी बचाई शराब की बोतलें अपने पाकेट में रख कर रफूचक्कर हुए।

इसके बाद उन्हीं मोर छल-वालियों ने मिलकर बादशाह को उठाया और सभी ने अपने अपने नाजुक बदनों का सहारा देकर बादशाह को चिक के अंदर दूसरे कमरे में लाकर पलंग पर लिटा दिया