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लखनऊ का कब्र

बड़ी किसकी मजाल है कि जो बादशाह की चहेती मोर छल-वालियों की ओर नज़र उठाकर देख सकें। मतलब यह है कि तुम बिलकुल बेख़ौफ रहो और चलकर ज़रा शाही दरबार के लुत्फ़ को तो देखो ! यह लज्ज़त यहां से जाने पर फिर तुम्हें कभी नसीब न होगी ! अगर तुम बादशाही दरवार में आले दरजे के नौकर हो जाओगे तब भी कभी ख्वाब मैं भी तुम बादशाही खास जलसे में हर्गिज़ शरीक नहीं किए जाओगे ।”

क़िस्सह कोताह वह नाज़नी मुझे अपने हमराह लिए हुई उस कोठरी के दरवाजे को खोलकर एक निकली छत पर निकली और वहां से ज़ीना उतर कर एक बड़े लम्बे चौड़े आंगन में पहुंची जो बिलकुल अंधेरा था और उसे पार करके एक बडुत ही लस्बे चौड़े दूसरे आंगन में पहुंची, जिसके चारों ओर बराबर बड़ी २ कोठरियां बनी हुई थीं, जिनमें बादशाह की मोरङल-वाली चहेतियां रहती थीं। सो अंगन में खड़ी होकर उसने एक आवाज़ लगाई,--"कौन २ मोरछल-चाली तैयार है।

यह सुनते ही चारों ओर से टीड़ीदले की भांति सैकड़ों नाज़नियां आंगन में निकल आईं, जिनमें से पांच नाज़नियों को चुनकर मेरी साथिन जीने के रास्ते से ऊपर चढ़ गई और वहांसे कई कोठे, अटारी और छतों को तय करती हुई एक आलीशान और सजे हुए कमरे में आकर ठहर गई । इस कमरे में बराबर आमने सामने पांच २ दर बने हुए थे, जिनमें बहुत ही नफीस और बेशकीमत हाथी दांत की चिकें । पड़ी हुई थीं। यह कमरा बादशाह के आराम करने और सोने की थी। बस इसी से समझ लेना चाहिये कि इसकी सजावट किस आला इरजे की रही होगी ! अल्लाह ! मैं तो इस कमरे की सजावट को देख हैरान हो गया और जी में सोचने लगा कि अगर बहिश्त कोई चीज़ है तो वह इससे बहतर कभी न होगा ।

उस कमरे के बाहर जो दूसरा बड़ा आलीशान कमरा था, वह बादशाह का खास कमरा था । उसकी सजावट का भी कोई ठिकाना न था । जिस कमरे में कई औरतों के साथ मैं भी औरत की लिबास