पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/९८

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  • लखनऊ का कब्र * तो शराव और प्याले के अलावे कुल रकादियां हटा दी गई और मेज़ पर गुलदते चुनदिए गए। इतने ही में उस हंजामअंगरेज़ने कहा| ६ जहाँपनाह, मैने जो हुजूर से उन कठपुतलियों के नाच की खूबी बयान की थी ! ” ।

बादशाह ने शराब पीते पीते कहा,- ओहो, मैं तो बिल्कुल भूलही गया था। अच्छा, तमाशेवालों को हाज़िर करो ।”

  • जो इर्शाद हुजूर-* यो कहकर वह हज्जाम उठकर बाहर चलगिया और चंद मिनटों में वापिस आया ।

इसके बाद कई तमाशेवाले हाज़िर हुए और बादशाह के तख्त के बाँई और करीब हो, वे हुक्म बलूजिव अपना ढकोसला फैला कर साज मिलाने लगे और इसके बाद साज़ के साथ वे कठपुतलियाँ, जो गिनती में आठ थीं और तार व कमानी के सबब हर्कतें करती थीं नाचने लगीं। बादशाह सलामत इम बैजान पुतलियों के नाच और भटकने को देखकर निहायत खुश होते और कहकहे लगाकर शराब पीते थे, उनके मुसाहब अंगरेज़ भी, ज़ियादहतर मियाँ हज्जामखाँ, हाँ में ही मिलाते जाते थे। यह तमाशा सचमुच निहायत दिलचस्प था और मैं इसमें ऐसा ' गर्क हुआ कि अगर मेरी मिहबान नाज़नी मुझे चुटकी न भरती तो मैं उस वक्त न जाने क्या कर गुज़रता । गरज़ यह कि इस तमाशे पर बादशाह निहायत खुश नज़र आते थे !होते होते उन्होंने क्या किया कि अपने जेब में से कैची निकालकर उन पुतलियों में से एक का तार काट दिया । तार कटतेही वह बेचारी बेजान पुतली धम्म से जमीन में गिर गई और इस मामूली बात पर बादशाह के खुशामद मुसाऋ ने ऐसा तअज्जुब ज़ाहिर किया कि गोया बाशाह ने कोई बड़ी भारी काम किया हो ! यहीं धीरे धीरे जब सब पुतलियो कटकर गिर गई, तब हज़रत ने उस समाशे के ढांचे और पुतलियों में आग लागदी, जो बड़ी मुश्किल से बुझाई गई, लेकिन कमरे का मखमली फर्श बेतरह जलकर