पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/९७

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...गरज़ यह कि जब हमलोग खाने से फुर्सत पाचुके तो वह नाज़नी उठ खड़ी हुई और मेरे साथ पलंग के नीचे घुसी । नीचे जाकर वह मुझसे लिपटकर ज़मीन में पड़रही और बाद इसके उसने न जाने क्या हिकमत की कि हमदोनों जमीन के अन्दर, नीचे की ओर जाने लगे। कुछ दूर जाकर इमदोनो एक झटके के साथ नीचे गिरा दिए गए, पर चोट न लगी, क्योंकि किसी गुदगुदी चीज़ पर हमलोग गिराए गए थे। इसके बाद उस पी ने मुझे अपने सोने से अलग किया और अंधेरे ही में मेरा हाथ पकड़कर न जाने किधर की ओर वह मुझे ले चलो। । फिर तो हम दोनो कई कोरियों में घूमते, ऊपर नीचे उतरते चढ़ते, एक कोठरी में पहुंचे, वहाँ पहुंचकर उस नाज़नी ने उसी कमरे का ताला खोला, जिसका हाल मैं पहिले लिख आया हूँ। फिर हुमदोनों उस कमरे में गए, वहां पर रौशनी हो रही थी । वहाँसे वह मुझे उसी कोठरी में लेगई, जहाँ कि उसने मुझे एक रोज़ औरत अनाया था और आज भी अनाया। इसके बाद वह उसी तरह धन न कर और उसी तरह घूमती फिरती उन मोरङलवालियों के चौक में पहुंची और वहाँ से पाँच मौरछलवालियों को अपने साथ लेकर उस कमरे में पहुंची, जिसके बाहरवाले कमरे में बादशाह का दरबार-ई-खास था । थोड़ी देर तक हम सब उस कमरे में ठहरे रहे, क्योंकि तब तक बादशाह सलामत तशरीफ नहीं लाए थे, और नौ बजने में भी दस मिनट्स की देर थी । लेकिन क्योंही घड़ी ने नौ बज्ञाप, बादशाह सलामत अपने उन्हीं पांचों अंगरेज़ मुसाहिब के साथ तशरीफ लाए और तख्त पर बैठ गए। उनके बैठतेही गाछ का परदा हटाकर सच मोरङलवालियों के साथ मैं उनके तख्त के पीछे जा खड़ा हुआ और बदस्तूर मोरछल झलने ढगा। अंगरेज़ सामने की कुर्सियों पर बैठ गए और गुलाम ने अंगरेज़ी ढंग के उम्दुः खाने और मेवे और शराब की बोतलें लाकर करीने से मेज़ पर चुन दिए ! साना शुरु हुआ और जब सर्च कोई खा पी चुके -