पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१२

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  • लखनऊ की कम * इन बातों को देखकर मैंने समझा कि शायद उसी पर ने, जे कि बादशाह और सुलतान के दरवार में ले गई थी, इन तीन वास्तों को किसी हिकमत से बन्द कर दिया होगा! इसके दाद में पलंगमचे दुसकर बहुत कुछ सीव करने लगा, लेकिन सारी हित दुई और वहाँ पर जोरग थी, इसके दरवाजे का पता # मा का बयोंकि उसका हाल मुझे कुछ भी मालूम न था ! इसके बाद मैं उस पुत की जानिब चला, जिसके हाथों तस्वारे जी। उस काम पर पैर रखनेही, जहां पर कि पैर रखने से वह तल्बार तानता था, मैं पीछे लौटा और साविक दस्तूर दीवार से सरकर उसके पास पहुंचा और उसके हाथों से तलवाटलीपिर मैं उसी हिकमत से, जिसका बयान मैं पेश्तर कर आया हूँ, समान में पहुंचा।

वहां जाकर मैं क्या देखता हूं कि उसकी भी निहायत तबीयतारी के साथ सफाई की गई है और जिन चीज़ों को वहां पर जरूरत हो सकती है, ये सभी चीजें निहायत खूबी के साथ करीन ले रखी हुई हैं। ये सभी चीजें साफ़ वो सुथरी हैं और सजानेवाले को तबीयतदारी का धान खइ व खुद कर रहीं हैं। यह लब देश सुन कर मैं निहायत खुश हुआ और जबरी काम ले फुर्सत पाकर खशबदार तेल बदन में मालिश करने लगा। इसके नाद मैं अब तु पहन कर हुम्मान में उत्तरा तो उस होजका खुरार दार पाजो मैंने जतनाही गर्म पाया, जितना कि मैं सह सकता था। यह एक मई वात थी, क्योंकि आज के पेश्वर मैंने भी होज में गर्म पानी नहीं पाया था। और इस खूबी का बयान में कही नहीं ताकि वर कितना समझदार होगामिने इस अन्नाजसे पाली मैं गरौं पैदा की है कि मिज़ाज के साकिक है। शिरद कोताह शुमल करने पर बदनकी सारी हारन उतराई और कलश ताजगी मालूम देने लगी। मैं रखे और शुले हुए दा कपड़े पहिने जो मेरे लिये बहार पहिल ही से पोजद घाई