पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१३

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. शाहीमा इस मैं उस डेक्स के पासवाली कुर्सी पर जा बैठा, जिसपर लिखने पढ़ने के सामान दुरुस्त थे। लेकिन अल्लाह ! यह कैसी दिल्लगी है कि लिखने पढ़ने के कुल सामान तो मुहैया है लेकिन कलम नदारत !!! या तमासा देख कर मैं बेतहाशा हंस पड़ा और उठकर उस हम्माममें ई की तरह कालम ढूंढने लगा,लेकिन जब कि फलमदानही में कलम जथी तब वह क्या हम्माम में लंदने पर कहीं मिल सकती थी ? लेम हैरान होकर भाई की तलाख करने लगा, लेकिन वह तो क्या, एक निलका मीन मिला कि जिस से कलमका काम लिया जा सकता। हिर तामने जब बहुत कुछ खोज इट करने परमो कोई ऐसी योजन पा कि जिससे कलमका काम लिया जासकता तो मैं देर तक कुली रहा२ उमलिगीबाज की इस अजीव दिल्लगी पर हलता रहा। यकवयक मेरे ध्यान में एक बात आई, जिसके याद आतेही मैंने अप. लो शेयकफी पर निहायत अफसोस जाहिर किया। बात यह थी कि जप कलम नहीं है तो उसका काम उंगली से क्यों न लिया जाय ! यह सोचकार ज्योंही में दवात की तरफ हाथ बढाता हूं तो क्या देखता कि उसमें रोशनाई के एघज सिर्फ पानी भरा हुआ है। अल्लाह आलम ! यह देखकर में हंसने के बदले खिजला गया शिन फिर यह सोचकर मैं निहायत खुश हुआ कि वहशख्स मुझसे कहीं जियादा शऊरदार है। लेकिन अगर दवात में सिर्फ पानी ही रखना था तो फिर कलम के छिपाने की उसे जरूरत क्यों पड़ी: जान पड़ता है कि यह बात भी हिकमत से खाली म होगी। उसने कलम के कुछ समझ कर ही छिपाया होगा और उसकी या हर्कत भी मतलक ले खाली होगी। में भी पीछे हटने वाला न था, इस लिये मैंने दूसरा तरीका खत लिखने का निकला; यानी धानदान में से कत्थे और चने को निकाल कर मैंने उस्त्र दावाद में घोल कर रो रानाई तैयार की और एक चन्द् कावाज उन्ना कर उस पर अपनी अंगुली से उली नाज़नी के नाम एक