पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/२०

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  • लस्वनऊ को कत्र पहुंचा होगा, और आपने कोई अजीव तमाशा देखा होगा, लेकिन ससकी असलियत कुछ भी न थी और दरअसल वह कुछ भी न था, इस वास्ते से कुछ कल रात को आपने देखा जा हो, उसका बिलकुल खयाल अपने दिल से दूर कर दें और इस बात पर पूरा यकीन रखें कि आपकी मददगार दोस्त हर वक्त आपको मदद के लिझे आपके पास मौजूझ रहती है। मुझे उम्मीद कामिल है कि अपापको अपने दोस्त की सचाई पर यकीन हुभा होगा और अब आप अपने तई हर वक्त बेखौफ समझेगे । वक्त ज़रूरत पर आपकी दास्त आपसे ज़कर मिलेगी । फ़क़त ।
  • आपकी दोस्त, एक नाज़ती।"

पढ़ने के बाद उस सृत के। मैंने वाफ कर फेंक दिया और गौर करने लगा कि अल्लाइ, यह तो अजीब किस्म की दास्त नाज़नी है, सामने आने से मुह छिपाती है और दूर ही से दोस्ती का दम मरती है ! खत भी उसने ऐसे एंचच से लिखा है कि जैसा चाहिए । बानी वह ख़त किसे लिखा गया, किसने लिखा,क्यों लिखा कहांसे लिखा, या उसमें किस बात के लिये इशारा किया गया, इन बातों का मतलब किलो अजनयी की समझ में कमी आही नहीं सकता। मैं उस शख्स की अकळमन्दी पर, जिसने उस किस्म का स्वल लिखा था, निहायत खुश हुआ और उसे दिल ही दिल में शाबाशी देकर कुछ सोचने लगा। देरतक मैं खाने की मेजवाली कुर्सीपर बैठा बैठा तरह तरह की वाते सोचने लगा । सेचते सोचते मैंने गुस्से में आकर खाने की नवाबी को उठाकर ज़मीन में। पटक दिया और दिलही दिल में इस यात का पक्का इरादा किया कि चाहे जान जाय या रहे,लेकिन जब तक उस नाज़नी की सूरत न देखलंगा, जो कि मेरी दोस्त बनती है, खाना गिजाल लाऊंगा। इसके बाद मैं पलंगपर लेट रहा और देर तक तरह तरह के