पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/२३

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  • शाहीमदवसरा* मैं,-* तुझे यहां कितने बुलाया है ? घर,- पने मैं, मेंने तुझे क्रम बुलाया ? " घई,--" जब खाना पटक कर पीक ले पुरुजा लिखा!" मैं,-- क्या यह पुरजा तेरे लिये लिखा गया था! " घह,-" और सिया मेरे इस जगह का मालिक दुसरा है कौन? मैं- और तो अतृ मुझ से या चाहती है ? " बइ,- मुस्कुराकर) एक बोला!!!"

यह सुनकर मैं भारला गया और चारपाई से उठकर उसे मारने दौड़ा। वह नाम की दसी हलेही से होशियार थी, इसलिये मेरे डहीं थाणी और मेरे आगे दौडतो हुई चारपाई का घर काटने लगी।दाचार पर लगाकर मैं ठहर गया और दिलही दिल में सेचने लगा कि यह काम औरत है,जो मुझने इस शाजी के साथ मलखरापन कर रही है ! लिन इसका सोलह साल ले जिया इद नहीं मालप देता यह बिलकुल नौजवान और कमलिन है । आचाज इस की, गो, भराई हुई है, लेकिन ऐसा मालूम होता है,गोया यह जान जूझ कर गला दबाकर बोलनी हो! मुमकिन है कि यह वही औरत हो, मो शाही दरबार में लेजाया करती थी और इस बक्त भेस बदल कर आई है ! इन्ही बातों पर मैं देस्तक गौर करता रहा, एर नजर बराबर उसी के ऊपर गडाए रहा। वह शैतानी बरावर आंखें मिलाए हुए मुझे घूरा की और मुस्कुराती रही और उसके ढङ्ग से ऐसा जान पड़ता रहा कि थाइ खव होशियारी के साथ खड़ी हुईहै! आखिर, मैंने कहा,-- अच्छा, अब सचसच बतळाओ कि तुम कौन है ! . पहा- सच ही कहद ? " मैं, हाँ, सच कहो ! वह भार मेरी बातों पर यकीन करेंगे।"