पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/३१

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  • शाहीमहलसरा*

२१ वास्ते मुमकिन है कि थोड़ी देर में वह आप आएगी और हम्माम का दरवाजा ज़रूर खोल देगी। लेकिन जब दिन एक पहर से जिहादह गुजरा तो मेरे दिल में खौफ पैदा होने लगा और मैंने सोचा कि क्या ऐसा तो नहीं हुआ कि वह मेरी मददगार औरत मेरे लिये किसी बला में फंस गई हो और मुझे आलमानी ने या उसके बहकाने से इस शाही महलसरा के किसी दीगर शस्त्रस ने इस के रास्ते को बन्द करके मेरे मार डालने का पक्का इरादा किया हो! _____ालाह, आसमानी का खयाल होते ही, सचमुच मेरी रूह कांप गई और मेरी आंखों के सामने उनकी मनहूं और खौफनाक तस्वीर खिच गई। उस्ल वक्त उस ख़याल के पैदा होने से मैं इस कदर धवराया कि मारे खौफ़ के मैंने अपनी आंखें बन्द कर लो और पलंग पर लेट कर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। देर तक मैं इली उधेड़बुन में लगा रहा, इतनेही में मेरे कानों में किली किस्म की आहट पहुंची, जिस के पाते ही चिहुंककर मैं अपनी स्वारपाई पर उठ बैठा और उठने पर क्या देखता हूं कि पलंग के नीचे से निकल कर एक नकाबपोश औरत मेरे रूबरू खड़ी है। उस का लार। वदन नफा के अंदर छिपा हुआ था, इसलिये यह मैं न जान सका कि यह औरत बढ़ी है, यो जान; या यह मेरी पहचानी हुई है या अजनबी । थोड़ी देर तक मैं चुपचाप उसकी तरफ देखता रहा, इसके बाद उसने कहा.-- “ युसुफा तेरे सर पर इस एक बड़ी भारी बला आयो चाहती है, इसलिये तेरी मददगार नाज़नी ने मुझे तेरे पास इसलिये भेजा है कि मैं जिस तरह है। सके, फ़ौरन तुझे शाही महलसरा के बाहर करदं और तू सही ललामत अपने घर पहुंचे। __. नाज़रीन ! उस औरत की आवाज बहुतही हुरीली और हमदर्दी से भरी हुई मालूम देती थी। गो,वह मेरी पहचानी हुन थी,लेकिन इतना ज़रूर था कि उस आवाज से मैंने यह बात बखूबी जानली कि