पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/४५

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शाहीमहलसरा छठवां पच्छेिद Ana · नींद खुलने पर तमाम यदन मैं शिद्दत से दई मालूम हुआ ? तीयत निहायत वेचैन थी, मारे दद के सिर टूकड़े टुकड़े हुआ जाता था, बुखार तेजी पर था और प्यास के मारे गले में कांटे पड़ गए थे। जिसको मैंने ऊपर नींद कहा है, वह दरअसल नोंदही थी, यो वेहोशी, यह मैं नहीं कह सकता, लेकिन इतना मैं जरूर कहूंगा कि जय मैं है शमें आया, उस वक्त तबीयत मेरी निहायत बेचैन थी और रह रह कर घुमटे पर घुमदे मारहे थे। यह हाल देखकर पानी पीने के वास्ते मैंने उठना चाहा, लेकिन उठा न गया, क्यों कि कमज़ोरी इस दरजे की थी कि मैं करवट भी मुश्किल से ले सकता था। मतलब यह कि जब मैंने उठना चाहा, मुझसे उठान गया। इस बक गोया किसीने धीरे धीरे कान के पास मुह लगाकर कहा,"क्या चाहिए? उस वक्त वेचैनी के सवध मुझे इस बात की तो कुछ खबर होने थी कि मैं कहाँहूं! इसलिये मैंने दबी हुई आवाज़से पानी मांगा। मेरी ख्वाहिश फ़ौरन पूरी की गई और किसीने धीरे धीरे कतरे कतरे पानी मेरे मुह में चुलाए ! उस वक्त गो उस कोठरी में धुघली रोशनी थी, लेकिन तबीयत ठीक न रहने के सबब यह मैं न जान सका कि मैं किस मुकाम पर हूं, या मुझे किसने पानी पिलाया। था, के बाद मुझे फिर झपकी आगई और कब तक मैं उस हालत में था, इनका बयान महीं कर सकता। फिर जब मैं होश में आया, तबीयत कुछ ठीक मालम हुई और करघट भी आसानी से लेने लगा, मैं दोचार करवट बदलकर उस बैठा और जहां पर मैं था, उस जगह के और देखने लगा । मैंने देखाकि वह एक कोठरी थी और मैं जिस चारपाई पर पड़ा था. उस पर सिर्फ एक कंबल पड़ा हुआ है। केटरी के एक जानिय ताल पर