पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/४४

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  • लवनऊ की फत्र तो उसने कहा.--"पस, अब मुझे तुझमे कुछ नहीं कहना है। अब में जाती हैं और जाकर उससे हेरा सारा हाल बयान कर देती है। इस के बाद मेरे लिये जैसा वह हुकम देगी,बैसाही किया जायगा। लेकिन *हां तक समझती हूं. मुझे यही जान पडता है कि अब तेरी जान किसी तरह बच नहीं सकती।"

मैं-“टेकिन मैं इस कमानेपन के साथ अपनी जान बचन हर्गिज नहीं चाहता इसके बाद वह मझो गालियां और तरह तरह की धमकी देती हुई चली गई और मैं चारपाई पर बैठा बैठा देरतक अपनी बदकिस्म ती को कोलता रहा। वह दिन मैंने बडी तकलीफ और अफ़सोस के साथ बिताया और रोटी या पानी की तरफ नजर उठा कर भी न देखा । वह रात भी जागते और करवटें बदलते ही बीती। दूसरे दिन तबीयत कुछ खाव मालूम हुई, इसलिये मुझ से चारपाई पर से न उठा गया। Palediomoanibogart e 1GA IMGN R C ..