पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

लखमऊ कोका . ___ में, यह क्योंफरः . पद,-"यों कि जिसकी वह तावेदार है, यह खुद तुम्हारा ताछे. दार हो रहा है।" मैं,-"यह तुमने क्या कहा ? " यह.-"का तुम इस बात को मतलब मुतलक न समझो !" मैं,-"नहीं ज़रा खुलासे तौर से कहो।" वह,--'खैर तो जरा दिल लगाकर सुनो। मैं,-'हां, तुम कहो, मेरा खयाल इधर ही है।" यह सुनकर वह नकाबपोश नाजनी करने लगी,-"जनाबमान ! आसमानी जिस नाजनी की लौंडी है,वह कुछ मामूली औरत नहीं है। वह औरत आपकी सूरत पर आशिक होगई है और यही वजह है कि अब आसमानो आपले दुश्मनी न करके दोस्ती का वर्ताव कर यह सुनकर मेरे ध्यान में नज़ीर के मारने से लेकर महलसरा के अन्दर आने और हर तरह की तकलीफ भोगने की सारी बातें आगई और यह यातभी याद होगई कि इस कोठरीमें मुझे लानेके बाद एक मतपः आसमानी जब मुझसे मिली थी, तब उसने इसी ढब की बात मेरे साथ की थीं, लेकिन मैंने जब ऐसा काम करने से इनकार किया, तब वह मुझ गालियां देती हुई यहाँसे चली गई थी। ख़र. मैंने कहा, लेकिन हज़रत! दोस्ती या मुन्नत तो इस तरह के जोरो जुल्म के करने से नहीं दस्तयाब होसकती!" वह नकाबपोश औरत बिलकुल नौजवान थी, क्योंकि यह बात उसकी सुरीली आवाज से मुझे ब खबी माल न हो गई थी और जिस किस्म का उसका सुडौल बदन था, उससे मुझे यही जान पड़ता था कि यह औरतज़ कर हसीन होगी । खर मैं इन बातों का खयाल कर रही थाकि उस औरत ने,जो अब मेरी चारपाईके नज़दीकपक मूढे पर बैठ गईथी, कहा- किन,साहब ! तुमको यह तो सोचना चाहिए कि