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- शाहीमहलसरा अब मैं तुम्हारे काबिल हर्गिज़ नहीं रहा । अफसोस, अफसोस!!!"
यों कहते कहते मेरी आँखें डबडबा आई और गला रुंध गया । मैंने अपनी आंखें नीची करो और फ़िक्रके दर्या में मैं ग़र्क हो गया। मेरी हालत देखकर जाहरा ने चेतकल्लफ़ीके साथ अपनी वाहें मेरे गले में डाल दो और अपनी औढनीके आंचल से मेरी तर आखें पौंछकर कहा,___यारे, यूसुफ ! सिर्फ तुम्हारी मुहब्बत की बानगी देखने के वास्ते मैंने अपनी गरोबो तुम पर जाहिर की थी , लेकिन वह सिर्फ एक बातथी। दर असल मैंने मलका की खिदमत करके इतनी दौलत अपने पास जमा कर ली है कि जिसकी बदौलत किसी गेर शहर में जाकर हम तुम उस अमीरानः ठाटसे अपने दिन बिताएंगे कि जिल तरह बड़े बड़े अमीरोंके दिन निहायत ऐशो आराम के साथ करते हैं। लेकिन, मैंने उसकी इस हर्कत, या, यातका कुछ भी जबाय - दिया और आंसू बहाने लगा। उसने लगातार मेरी नम आखें पौली, तसल्ली दी, और कहा,--- “भई,यसुफ! औरतों की तरह मरदोको आंसू न बहाना चाहिये और दिलेरी के साथ कमर कसकर गम बो तरहद से लड़ने के लिये हरबक्क मुस्तैद रहना चाहिये । मैंनेतो सिर्फ तुम्हारी मुहब्बतकी थाह लेने के वास्ते इस ढङ्गकी बातें की थर्थी अगर में ऐसा जानती कि इन बातो से तुम हनने गमगीन होगे तो मैं हर्गिज न कहती ।" ___ मैंने अपने दिलको मसल कर और आंखें पौंछ कर कहा,-"जी. हरा, मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं।" जोहरा कहने लगी,-"वल्लाह, अब ये नखरे ! अजी दोस्त, मेरी दौलत क्या तुम्हारी नहीं है ? फिर वह भी इतनी है कि जिससे तुम एक नहीं सौ घर खरीद कर सकोगे और अमीरानः तौर से गुजारा कर सकोगे। फिर जब कि तुम्हारी जिन्दगी ऐश में कटेगी तो तुम मुसल्किरी के वास्ते वक्त ही कहां पाओगे ! और अगर शौकिया वह काम किया भी चाहोगे तो चाहे जितने सामान आसानी से खरीद