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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/८४

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  • लखनऊ की की आखिर,उसकी इस सलाहको मैं कबूल किया और पूछा कि “किस शहर में चलने से बिहतर होगा ?"

उसने कहा,-निजामको दारुल्सल्तनत हैदराबाद एकनिहायत दिलचस्प शहर है। समझती हूं कि इससे बहतर दूसरी जगह हम लोगोंकी हालत के स्वाफ़िक मौजद नहोगी। लेकिन,खैर,जैसा है।गा देखाजायगा। अब मैं जाती हूं, क्योंकि सुबह हुओ चाहती है और मैं मलका के पास से बहुत अरसे से गैरहाजिर हूं !" यो कह कर वह उठी, मैं भी उठा और मैंने उसका हाथ थामकर कहा, "बी, जोहरा,मुझे भूल न जाना।" उसने मेरे हाथ को बड़ी मुहब्बत के साथ वम लिया और इंस कर कहा,- भूल जाना वेवफ़ा मरदों का काम है, न कि वफादार औरतों का!!! मैंने कहा खैर, यह तो बतलायो कि जब तुम यहां आई थी। तब रात कितनी बाकी रह गई थी? " उसने कहा, एक पहर । मैं- तो तुम दो बजे के वक्त यहां आई?" वह,-"हां,दो बजे के बाद क्योंकि तबतक मलका साई न थी ! पस ज्योंही उसकी आखें खगों; मैं यहां आई और बहुत देरतक ठहरी खैर, अच्छा हुआ कि तुम सरीखा खूबसूरत शौहर मैंने पाया,जिलकी मझो कभी ख्याव में भी उम्मीद न थी। लेकिन, प्यारे,यसुफ! देखना भई, खबरदार मलका के रूबरू इसराज को न खोलना और उसके सामने मेरी तरफ देखना भी मत । ___ मैंने कहा, "तुम ख़ातिर जमा रक्खो, ऐसी बेवकूफी मुझ से गिज़ न होगी !” किस्साइकोताह, वह चली गई और में पलङ्गपर लेटकर तरह २ के खयालों में उलझ गया । न मालूम मैं कब तक उन्ही खयालों के चकाय में फंसारहता। लेकिन उससे मुझे जल्द फुर्सत हुई । क्यों कि