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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/१६

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परिच्छेद ]
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आदर्शवाला।



रोके भी वे रुकते और फस जाते; किन्तु जब कि वे सूचना पा चुके थे और उन्होने दूर से आते हुए सवारो को देख लिया था, तब फिर वे भला कब ठहर सकते थे! सैय्यद के मुंह की बात उसके मुंह मे ही रह गई और जबतक सवार नजदीक आवें, वे भागीरथी के तीर पर जा पहुंचे और नदी मे घोड़ा तैराकर बात की बात में पार उतर गए, और तब वे अपने को स्वतंत्र और निर्भय समझ रंगपुर के रास्ते पर हो लिए।

उनके निकल जाने के पांच ही मिनट बाद फ़तहखां की मातहती मे दो सौ सवार वहां पर आकर ठहर गए, जहां पर सैय्यद अहमद हक्का बक्का सा खड़ा खड़ा इधर उधर तक रहा था।

उसे देख, फ़तहख़ां ने कहा,-"अक्खाह! जनाब! इस वक्त आप यहां पर क्या करते हैं? बाग़ी किधर गया?"

सैय्यद अहमद, जनाब! उसे मैं बातो में उलझाए रखने की नीयत से यहां आयाथा,मगर वह काफ़िर हाथ से निकल गया।"

फ़तहखां,-"लाहौलबलाकूवत! आपके रहते बागी भाग गया! अफ़सोस!"

सैय्यद अहमद, जनाब मेरी मजाल क्या थी, जो मैं अकेला उसे रोक सकता!"

फ़तहख़ां, मगर, जनाब! आजकल आप पर नव्वाब साहब की ख़फ़ग़ी है, इस वजह से जलने के मारे कही आपने जानबूझकर तो नव्वाब के बाग़ी को नही भगा दिया है!"

फ़तहख़ा ने यह एक ऐसी बात कही थी कि जिसकी भनक ने सिराजुद्दौला के कानों तलक पहुंचकर अबकी बार सैय्यद साहब के साथ क्या काम किया, इसका हाल आगे चलकर खुल जायगा। यद्यपि फ़तहखां ने यह बात केवल दिल्लगी के ढंग से कही थी, किन्तु इतना सुनते ही सैय्यद अहमद के देवता कूच कर गए,उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई और वह काप कर लड़खड़ाती हुई जबान से कहने लगा,-

"अजी, तौबः कीजिये और खुदा के वास्ते ऐसा बद कलमा ज़बान शीरीं सेन निकालिए। कसम खुदा की, मैं इसो नीयत से यहां आया था कि जब तक आप फ़ौज के हमराह आवें, मैं उस मूजी को बातों मे उलझाए रहूं, मगर वह शैतान आख़िर, हाथ से