निकल ही गया! खैर देखा जायगा, नव्वाब से दुश्मनी करके वह बदमाश कहा जा सकता है!"
निदान, फ़ौज के साथ फ़तहख़ां उस ओर बढ़ा, जिधर नरेन्द्र गए थे, पर नदी किनारे पहुंचकर जब उसने देखा कि,–'बाग़ी दर्या के पार पहुंच गया; 'तो वह लाचार हो लौट आया और जाकर उसने अपनी नाकामयाबी का हाल नव्वाब से कह सुनाया; पर मीरजाफ़र के बहुत कुछ पूछने और जिरह के सवाल करने पर सैय्यद अहमद का हाल भी उसने पूरा पूरा कह दिया था।
फतहख़ा के जाने के बाद सैय्यद अहमद भी अपना सामुंह लेकर वहांसे चलता बना और दूसरे षड़यत्र रचने की धुन मे लगा, जिसका हाल हम आगे लिखते है।
इस बात की सूचना हम देआए है कि त्रैलोक्य-मोहनी कुसुम-कुमारी की सुन्दरता पर मोहित होकर उस दुष्ट सैय्यद अहमद ने हित-अहित के विचारो को तिलांजली देदी थी और वह इस फ़िक्र में लगा था कि, क्योकर नरेन्द्र को मार डालूं और कुसुम पर अपना कब्ज़ा करूं!' पर नरेन्द्र जैसे वीर का मुकाबला, भला वह क्या कर सकता था! आखिर, उसे अवसर मिल गया और उसने अमीचंद को भड़काकर जैसा बखेड़ा मचाया था, उसका हाल पाठक जान ही चुके है।
बात यह है कि नरेन्द्र का तो बाल बांका न हुआ और वे जीते-जागते सही-सलामत मुर्शिदाबाद से चल निकले, किन्तु सैय्यद अहमद के कलुषित विचारो मे पलीता लग गया। फिर भी वह अपनी चाल से बाज़ न आया और इस बात की कोशिश करने लगा कि,-'क्यो कर नव्वाब-साहब की नाराजी दूर कर के पहिले के से कुल अख्तियारात हासिल करूं और ज़बर्दस्ती कुसुमकुमारी को अपने कब्जे मे करके दिल को शाद करूं!'
यह सोचकर उसने एक चीठी नव्वाब-साहब की खिदमत में भेजकर अपने अपगधो की क्षमा चाही, पर बात यह है कि चाहे कोई कैसा ही उपाय क्यो न करे, पर जब बुरे दिन आते है, तब वे सब उपाय उलटा ही फल देते है। यही हाल सैय्यद की चीठी का भी हुआ कि उसे पाकर नव्वाब ने उसपर कुछ भी ध्यान न दिया।