मीरन,--(ज़ोर देकर) क्या आपने नबाब साहब के हुक्म- बगैर हीराझील इमारत के अन्दर पोशीदः तौर से अपने तई कभी नहीं पहुंचाया था? और क्या कलकत्ते वाले सेठ अमीचंद से कुमार नरेन्द्रसिंह के बारे मे आपने कुछ बात-चीत नहीं की थी?"
यह सुनते हो सैय्यद अहमद के छक्के छूट गए और उसने लड़खड़ाती हुई जुबान से कहा,-"यह बात आप किस सुबूत पर कह रहे है?"
मीरन, सुबूत! सुबूत चाहिए, आपको! अच्छा लीजिए; तालाब के किनारे अगूरों की टट्टी के अंदर आपको अमीचंद के साथ बाते करते खुद नव्वाब साहब ने अपनी आंखों से देखा था, और अमीचंद के साथ कुमार नरेन्द्रसिंह के बारे मे जो कुछ आपने गुफ्तगू की थी, उसे उस (अमीचंद) ने नव्वाब साहब के सामने मुफस्सिल बयान कर दिया है।"
अब तो सैय्यद अहमद की घबराहट की सीमा न रही और उसने किसी किसी भांति अपने जी को ठिकाने करके कहा, कीजिए कि मैंने ऐसा किया, तो इसमें बुराई की कौन सी बात हुई? जो शख्स नवाब साहब का दुश्मन है, उसकी आगाही उन्हें करा देना क्या गुनाह है?"
मीरन,-"आपकी इस दलील का जवाब तो खुद नव्वाब साहब ही दे सकते हैं; बन्दा तो सिर्फ इतना ही अर्ज करने आया है कि बिला इज़ाजत हीराझील के अन्दर आपका तशरीफ़ लेजाना नव्याब साहब के पुराने गुस्से को नया कर देने का बाइस हुआ है।"
सैय्यद अहमद, "मै इसके लिये सच्चे दिल से आपका शुकुर गुज़ार होता हूँ कि आपने मुझे इस नई वार्दात से आगाह कर दिया; मगर यह नो बतलाइए कि बगैर इज़ाजत हीराझील के अन्दर जाने के सबब नव्वाब साहब जिस कदर मुझ पर नाखुश हुए है, उसी फदर क्या उन्हें इस बात पर खुश होना लाज़िम न था कि,-'उन के एक 'खैरखाह नमकख़ार ने उन तलक एक यागी की खबर पहुंचाई!
मीरन,-"क्या खूब! अजी जनान आप यागी की खबर पहुंचाने की नायत से अमीचद से मिले थे, या उस (बागी) की सिफारिश करने गये थे? अमीचद ने तो नबाब साइय से यों