पृष्ठ:लवंगलता.djvu/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८
[ तीसरा
लवङ्गलता।



अर्ज किया है कि.-'हुजूर। रगपुर का राजकुमार, जिसका नाम नरेन्द्र है और जो अग्रेजो का जासूम बन कर यहां रहता है, उसने मेरे बर्खिलाफ अग्रेजों को बहकाकर मेरे घर को खाक-स्याह करा डाला; इसी बात की नालिश करने मै हुजूर की खिदमत मे हाजिर हुआ हूं। मगर बडे अफमास की बात है कि आपने आस्तीन में सांप को पाला है, यानी आपका वहन ई सैय्यद अहमद, जो कि उसी बाग़ी नरेन्द्र का दिली दोस्त है, अभी मेरे पास आया था और मेरी बड़ी आणु-मिन्नत इस लिये करता था कि,–'जिसमें मैं नरेन्द्र के खिलाफ कोई बात हुजूर के रूबरू अर्ज़ न करू, मैं सैय्यद साहब की बाते क्यो मानता और आपसे अपने बर्बाद करनेवाले दुश्मन के बख़िलाफ़ क्यो नालिश न करता'!"

पाठक जानते है कि यह बात मीरन ने सरासर झूठ, या बनौवा कही थी, क्योकि अमीचद के साथ सैय्यद अहमद या नवाब की जो कुछ बातें हुई थी, उसे पाठक जानते हो है, तो ऐसा मीरन ने क्यों कहा? इसका एक कारण है, जो अभी आगे चल कर मालूम हो जायगा।

हां, तो मीरन की इन बातों ने सैय्यद के होशो हवास दुरुस्त कर दिए। उसने मारे बेचैनी के तलमला और दांत पर दांत मसमसा कर कहा,-"तौबः, तौबः, यह झूठ। यह अधेर। अमीचद सरासर झूठा है, मैंने ऐपा उमसे हगिज नही कहा, बल्कि मैंने ही तो उसे इस बात की खबर दी थी कि,–'तेरी सारी बर्बादी का बाइस नरेन्द्र है।' अफ़सोस! उसने भलाई के एवज़ मे नाहक मेरे साथ बुराई की!"

मीरन,-"मगर आपको क्या गरज़ थी कि आप उससे नरेन्द्र के बारे मे गुफ्तगू करने के वास्ते चुपचाप उस जगह पर जा पहुंचे थे, जहां पर जाने के लिये आपको सख्त मुमानियत की गई थी?"

सैय्यद अहमद,"अजी, जनाब! मै तो नव्वाब की भलाई करने गया था, यह मुझे क्या मालूम था कि मुझ पर यो कयामत टूट पड़ेगी!"

मीरन,-"बेशक, अगर बागी नव्वाब साहव के हाथ आ गया होता तो शायद आप पर जो नवाब साहब की नाखुशी है, उसका