पृष्ठ:लवंगलता.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
[सातवां
लवङ्गलता।



कुन्दन,—"पर मैने तो आज तक किसी परी का जनाज़ा नहीं देखा।"

लवंग—"खैर, (कुन्दन से) इस पचड़े से क्या काम! (बुड्ढी से) अच्छा तुम सिराजुद्दौला की तस्वीर भी दिखलाओ।"

यह सुन, बुड्ढी ने कई तह बेठनो के खोल, एक सुन्दर हाथीदांत पर बनी हुई सिराजुद्दौला की तस्वीर लवंग के आगे धरदी और कहा,—"बस! अब आपही बयान कीजिए कि यह कैसी बेनज़ीर तस्वीर है!"

लवंग॰,—(देखकर) "हां, अच्छी है, किन्तु इसमें कुछ दोष भी है।

बुढ़िया,—"बीबी की बात! अजी! इन पर एक आलम मुश्ताक है, परियां मरती हैं, एक ज़माना फ़िदा है और सारा परिस्तान आशिक होरहा है।"

कुन्दन,—अक्खा! अगर मुंह में दांत होते तो क्या गज़ब करती, जबकि पोपले मुखड़े से यह सितम ढाह रही है!!!"

लवंग॰.—"हां, हां, यह बुड्ढी ठीक कहती है, इस तस्वीर की एक बात पर मैं भी आशिक हुई हूं।"

बुढ़िया,—(खुश होकर) "आप भी आशिक हुई! खुदा खैर करे"।

लवंग॰—"किन्तु मैं केवल इसकी नाक पर आशिक हुई हूं! अच्छा, इसका क्या दाम है?"

बुढ़िया,—"फ़कत पांच दीनारे।"

लवंग॰,—(कुन्दन से) "इसे पांच अशर्फियां देदे और मुझे "अक्खा ज़रा चाकू दे।"

यह सुन, कुन्दन ने पांच अशर्फियां बुड्ढी के आगे फेंक दी और चाकू लवंग के हाथ में दिया। चाकू लेकर वह सिराजुद्दौला के चेहरे की नाक छीलने लगी, यह देख, घबरा कर बुढ्ढी ने कहा,—"हैं है! यह आप क्या करने लगी?"

लवंग॰,—"तुमने तो अपना मुंह मांगा दाम पायान! अब मेरा जो जी चाहेगा, सो करूगी।"

बुढिया,—"आखिर, यह आप क्या करने लगीं?"

लवंग॰,—"भई! ्ने्न मैंने तो पहिले ही कहा था कि मैं इसकी