की, और यह नव्वाब अलीवर्दी खां की तस्वीर है।"
बुढ़िया के यह रंग ढंग देख, कुमारी लवगंलता मन ही मन हंस रही थी; पर जब उस बुड्ढी ने कुमारी के सामने बंगाले के नगाबों की तस्वीरों के ढेर लगा दिए तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी और बाली,—"वाह जी! बुड्ढी बी! तुमने तो तस्वीरो की ढेर लगा दिए, और उसी क्रम से, जिस क्रम से कि उक्त नव्वाब बंगाले को गद्दी पर बैठे थे; पर इनमे बंगाले के उन महात्मा हाकिमो की तस्वीरें क्यों नहीं दिखलाई देती, जिनके नाम आज दिन भी बंगालियों की ज़बान पर नाच रहे हैं!"
बुढ़िया,—"बीबी रानी मैंने तो अपने जान बंगाले के सारे नव्वाबो की तस्वीरें सिलसिलेवार दिखलाईं, अगर कोई छूट गई हो तो आप उसका नाम बतलाएं कि किसकी तस्वीर मैंने नहीं दिखलाई?"
लवंग॰—"एक तो महाराज गणेश की, जिन्होंने सन् १४०५ ई॰ के लगभग बंगदेश में अपना डंका बजाया था, और दूसरे तथा तीसरे दिल्ली के बादशाह अकबर के नवरत्नों में से राजा टोडरमल्ल और महाराज मान सह की तसवीरें तुमने नहीं दिखलाई!"
बुढ़िया,—'लाहौलबलाकूवत! अजी, बीबी! उन हिन्दुओं की बात ही क्या और तसबीर ही क्या? वे सब तो मुसलमानों के गुलाम थे, इसलिये फ़क़त नब्वाबो की तस्वीरें ही मैंने दिखलाई!"
कुन्दन,—"निगोड़ी! तू हिन्दू के घर में बैठकर उसी जाति की निन्दा करती है! जी चाहता है कि तेरी जीभ पकड़कर बैंच लू!"
इसे सुन, बुढ़िया तो कुछ न बोली, पर लवंग ने इशारे में कुन्दन को चुप कराया और बुढ़िया से कहा,—"अच्छा, और भी कोई तस्वीर तुम्हारे पास है, या बस!"
बुढ़िया,—"राजकुमारीजी! इन सभों के अलावे उम्दः और खूब सूरत तस्वीर एक और मेरे पास मौजूद है, जो उस बेनज़ीर शख्स की है, जिसके नाम पर एक आलम फिदा है, फ़िर उसकी तस्वीर की तो बात ही न्यारी है।"
लवंग॰,—(अचरज से) "ऐसा। तो वह किसकी तस्वीर है!"
बुढ़िया,—"जो आज कल बंगाले का नब्वाब है और जिस पर परियां मरती है।"