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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/४५

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[सातवां
लवङ्गलता।



मदन॰,—"नही, यह बात नहीं है। किसी दूसरे ही कारण से इस समय मुझे यहां आना पड़ा है। क्या अभी कोई तस्वीर बेचने- वाली यहां आई थी?"

इस पर लवग ने "हां" कहकर उस नस्वीर बेचनेवाली के साथ जो कुछ बातें हुई थी, सब कह सुनाई और इतना और कहा,—

"कुन्दन ने बेचारी को व्यर्थ ढकेल दिया और मारा था।"

मदनमोहन ने कहा,—'कुन्दन ने बहुत ही अच्छा किया। यदि मैं उस समय यहां होता तो उस कुटनी की नाक काटकर सचमुच सूर्पनखा की कथा नई कर देता।"

लवंग॰,—"यह क्यों?"

मदन॰,—" कहते हैं, सुनो! यह कम्बस्त सिराजुद्दौला की भेजी हुई कुटनी थी, जो तुम्हें फुसलाने के लिये आई थी। इसके पहिले उस दुष्ट ने तुम्हारे विषय मे जैसी चिट्ठी तुम्हारे भाई के पास भेजी थी, यह तो तुम्हे मालूम ही है।"

लवग॰,—" उसी चिट्ठी की बात याद हो जाने से तो मैंने इस (तस्वीर) की नाक काटी थी, पर यह बात आपको क्योकर मालूम हुई कि वह सिराजुद्दौला की भेजी हुई कुटनी थी!"

मदनमोहन ने यह सुनकर फ़ारसी अक्षरो मे लिखा हुआ एक पत्र लवंगलता के हाथ में देदिया और कहा,—"इसे पढ़ो तो सही!"

निदान, लवगलता ने उसे पढ़ा और पढ़ने के बाद ज्योंही वह उस पत्र को फाड़ा चाहती थी कि मदनमोहन ने वह पत्र उसके हाथ से लेलिया और कहा,—

" हां हां। इसे फाड़ना न चाहिए, यह पत्र लाट क्लाइब को दिखलाया जायगा।"

लवगलता उस पत्र के पढने से अत्यन्त लज्जित होगई थी, इसलिये उसने धरती की ओर तकते तकते कहा,—" इस पत्र को आपने कहां पाया?"

मदन॰,—" अभी शेरसिंह सिपहसालार ने यह पत्र लाकर मुझे दिया और कहा कि,—" अभी जो बुढ़िया तस्वीर बेचने के लिये महल में गई थी, वह फाटक पर इसे गिराती गई है।"

लवंग॰,—"बड़ी लज्जा की बात हैं! इस पत्र को शेरसिंह ने जरूर पढ़ा होगा!"