मदन॰,—हां, उन्होंने इसे अवश्य पढ़ा और अनुमान से यह समझ कर कि,—"इसे वह बदमाश बुढ़िया हो गिराती गई होगी, उन्होंने मुझे लाकर दिया, किन्तु इसमें लज्जा की क्या बात है? दुष्ट सिगजुद्दौला के पतन का समय अब बहुत समीप है, इसलिये उसके प्रलाप पर ध्यान देना बुद्धिमानों का काम नहीं है।"
निदान, फिर तो कुछ इधर उधर की बातें करके पत्र लिये हुए मदनमोहन बाहर चले गए और लवंगलता मारे उदासी के अपने कमरे मे टहलने लगी।
हमारे पाठक यह जानना चाहते होगे कि उस पत्र में क्या लिखा था, जो फाटक पर पाया गया था, या जिसे मदनमोहन ने अभी कुमारी लवगलता को दिखलाया था? इसलिये उस पत्र की नकल हम नीचे लिख देते है, उसे देखकर पाठक सिराजुद्दौला के हृदय के महत्त्व की बानगी देखले,—
"प्यारी, लवगलता!
जब से मैंने तेरी तस्वीर देखी है, मैं हज़ार जान से तुझ पर फ़िदा होगया हूं। अब अगर तू मेरी जान बचाना चाहती हो तो जल्द मुझे अपना दीदार दिखा, वर न मैं तेरी जुदाई में मर मिटूंगा और मेरा खून तेरा दामनगीर होगा। मैंने तेरे भाई को तुझे भेज देने के वास्ते लिखा था, मगर उसने मेरे लिखने पर कुछ भी अमल न किया। खैर, अगर तू अपने आशिक पर रहम करना और उसकी जान बचाना मुनासिब समझती हो तो फ़ौरन मुझसे आकर मिल, बंगाले के बादशाह की बेगम बन, और बादशाही कर। तमाम मुल्क तेरी गुलामी करेगा और ऐसी हालत में, जबकि मै खुद तेरक्षगुलाम हूँगा।
यह बात, जो कि मैं ऊपर लिख आया हूँ, बिल्कुल मेरे दिल की बात है। मै दीन इस्लाम की कसम खाकर सच कहता हूँ कि मैं हज़ार जान से तुझ पर फ़िदा हूं और बगैर तेरे, मेरा जीना दुश्वार है। मैंने जो कुछ कहा है, ताजीस्त उसे निबाहूगा और तुझे तहत पर बैठाकर अपनी दिली आर्ज पूरी करूगा।
" दिलरुबा! तू सच जान कि मैं फ़क्त दो रोटी और एक प्याले शराब पर यह सल्तनत तेरे हाथ बेचता हू; अगरतू इस सस्ते सौदे को लेना चाहे और मुझे अपना सचा आशिक समझती हो तो