पृष्ठ:लवंगलता.djvu/४८

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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।


से अपने का बचाते और उन (पहरे वालियो) की आंखों में धूल झोकते या उन्हें बेहोश करते हुए वे सब उस कमरे में पहुंचे, जिसमे हरे फ़ानूस में मोमबत्ती जलरही थी, छपरखट पर कुमारी लवंगलता गहरी नाद में सोई हुई थी, कुन्दन तथा और कई बांदियां, उसके पलग के नीचे पडी हुई सो रही थी और चार लौडियां नगी तलवारें लिये कमरे में इधर उधर टहल रही थी। यह हाल देख वे सब बड़ी तेजी के साथ कमरे मे घुस पड़े और जब तक वे पहरेवालियां चोख मारे, उसके पहले ही उन नकाबपोशो ने सभोके मुंह में लत्ता डूंस कर उन्हे जकड कर बांध दिया और कोई बेहोशी की दवा कुमारी लवंगलता को सुंघाकर और पलग की चादर मे उमका गट्ठर बांध उस गठ्ठर को उठाकर वे सब जिम तरह जिधर से आए थे, उसी भांति चुपचाप उसी ओर ने चले गए और बाग से बाहर होते हुए उन सभोने एक मैदान का रास्ता लिया। कुछ दूर जाने पर एक पेड़ के नीचे कई सवार और कई गाड़ियां खड़ी थीं, उनमे से एक गाड़ी पर गठ्ठर मे से निकाल कर लवगलता सुला दीगई और दो आदमी उसके अगल बगल बैठ गए। बाकी के लोग और गाड़ियों पर सवार हुए और सब एक ओर को चलपड़े।

इसके कहने की तो कोई आवश्यकता नही है कि कुमारी लवगलता कवतक बेहोशी के आलम मे थी; किन्तु हां, यह हम अवश्य कहेगे कि जब वह होश मे आई तो प्रातःकाल के सुहावने समय ने उसके चित्त मे चचलता पैदा कर दी और उसने कई बार आंखेंमल, और कुछ सोच समझकर गाड़ी मे अपने बगल में बैठे हुए दोनों आदमियो की ओर देखा और पूछा,—" है, यह क्या स्वप्न है!"

उसके अगल बगल जो दो शैतान बैठे हुए थे, उनमे से एक ने कहा,—"जी नही, हुजूर यह सपना नहीं है, इसे सही समझिए।"

लवंग॰—"ऐसा! खैर तो यह बतलाओ कि तुम लोग कौन हो?" उसी शैतान ने कहा, जो अभी बोल चुका था,—'हजत! हम लोग नव्वाब सिराजुद्दौला के नौकर है।"

लवग॰,—"ओर मुझे पकड़कर कैद करके उसी (नवाब) के पास ले जा रहे हो?"

उसी शैतान ने कहा,—"जी हां, हुजूर! क्योंकि नव्वाब साहब