की मर्जी ही ऐसी है।"
इतना सुनकर लवंगलता उठकर बैठ गई और मुस्कुराकर बोली,—"वाह!, यह तो अच्छी खुशख़बरी तुमने सुनाई, क्योंकि मैं नव्वाब सिराजुद्दौला पर हज़ार जान से आशिक हूं और यह सुन कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा कि मै उसी नव्वाब के पास जा रही हूं, जिसकी याद मै बराबर दिल ही दिल में किया करती और ईश्वर से यही मनाया करती कि वह उस दिन को जल्दी दिखलाए, जब कि मै नव्वाब को पाकर अपने दिल को शादी करूं"
वे दोनों शैतान, जो कुमारी लवंगलता के अगल बगल बैठे हुए थे, उसकी ये बातें सुनकर बहुत ही चकित हुए! उन दुष्टों को इस बात का भरोसा ही न था कि,—'नव्वाब के पास जाने का हाल सुनकर यह इस तरह खुश होगी निदान, फिर तो लवंगलता ने इस ढब से उन दोनों के साथ बात चीत की कि उन उल्लुओं ने अपने अपने मन में इस बात का पूरा पूरा विश्वास कर लिया कि,—'जिस तरह नव्वाब साहब इस नाज़नी के इश्क में मुबतिला होरहे है, यह परीजमाल भी उसी तरह उन पर मर रही है!'
फिर तो बहुत कुछ इधर उधर की बातें हुई और दोपहर होते होते वे सब एक घने जंगल मे पहुंच गए और मामूली कामों से छुट्टी पाने और थोड़ा मुस्ता लेने के लिये वहीं ठहर गए।
यद्यपि कुमारी लवंगलता ने अपनी बातो की सफ़ाई से नव्वाब के उन दोनों शैतानों का जी अपनी ओर से भलीभांति भर दिया था; तो भी वे उससे बेफ़िक्र नही थे और पूरी चौकसी के साथ उस पर नज़र गड़ाए हुए थे। जब उस सूनसान जंगल में डेरा पड़ा तो लवंगलता की गिनती में बीस आदमी आए, जो उस गरोह में थे।
निदान, सभोने मामूली कामो से छुट्टी पाकर खूब पेट भरके खाना खाया, कुमारी लवंगलता ने भी कुछ मेवे खाकर नदी किनारे जा अंजुली से जल पीया और दो घंटे तक सभोने उसी जंगल में थकावट मिटाई। जब वहांसे डेरा कूच होने को था, लवंगलता ने उसी शैतान से कहा, जिसके साथ पहिले उसकी बात चीत हो चुकी थी,—
भई! तुमलोगो की मै निहायत एहसानमंद हूं कि तुमलोगों