लायक अवश्य रही होगी, पर इस समय वह किसी दुःख चिन्ता, कष्ट, मनस्ताप या किसी कारण से इस दशा को पहुंच गई थी कि उसकी ओर एक वेर देखकर फिर दुबारे उसे देखने का जी नहीं चाहता था। उसकी आंखें पसीज रही थी और रह रह कर वह लपी सांसें बैंच रही थी।
लवंगलता ने उस स्त्री को अपने ही पसान दुखिया और आफत की मारी समझ कर अपने चित्त का उद्देश्य दूर किया और ,उसके आगे बढ़कर बड़ी नम्रता से कहा, आप कौन है?"
मैं एक वेकस औरत हूँ," यो कतकर उनने लवंगलता को मसनद पर बैठाया और म्चय उसके सामने बैठकर यो कहा.—
हुजूर! मैं एक बेकन औरत हू और आपकी बेहतरी की नीयत से यहां आई हूँ। मुझे उम्मीद कामिल है कि खुदा आपकी भलाई करने के एवज में मुकपर भी रहम करेगा और मैं भी आपके साथ नेकी करने से अपनी मुराद को पहुंच जाऊगी।"
फिर तो दो-तीन घंटे तक लवंगलता के साथ उस अनाथिनी स्त्री ने न जाने क्या क्या बात की और उसे उस गोलकमरे के भेदो को बतलाया। जब रात दो घटे बाकी रही, तव वह औरत फिर दूसरी रात को मिलने की प्रतिज्ञा करके उसी गस्ते से बाहर हो गई, जिधर से कि वह आई थी।
उसके जाने पर लवगलता मखमली छपरखट पर जाकर सो रही, और उस समय उसकी नींद खुली. जब दिन पहर भर से ज़ियादह चढ़ चुका था और कई लौडिया उल कमरे के अन्दर आ, उस छपरखट के इर्द गिर्द खड़ी हो, उनके शरीर को दबाकर उसे जगा रही थी।
जब लवंगलता की नीद खुली और उसने अंगडाई लेकर खुमारी दूर की तो उससे एक लौडी ने कहा, "जहां एनाह हुजूर से मुलाकात करने के वास्ते कमरे के बाहर ठहरे हुए है। गो, आपने बगैर इज़ाजत इस कमरे के अन्दर किमीके भी आने की मनाही कर दी थी, मगर मोकर उठने मे जब आपको लियादह देर हुई, तो घबराकर नव्वाबसाहब ने हमलोगो को यहा आने और जगाने की इजाजत दी।
यह सुनकर लवंगलता पला से नीचे उतर पटी और अपने हुज़र को