६६ | (बारहवां |
में से शराब की बोतल निकालकर प्याला भरा और उस प्याले को सिराजुद्दौला को देकर कहा,—"लीजिए, हूजुर" आप रोज़ रोज़ मेरे हाथ से शराब पीने की ख़ाहिश जाहिर किया करते थे, लिहाज़ा, लीजिए, यह पहला ही मौका है कि मैं अपने हाथ से आज आपको शराब पिलाती हूँ"
लवंगलता की बातों में न जाने क्या जादू भरा हुआ था कि सिराजुद्दौला ने चट उसके हाथ से प्याला लेलिया और मुंह से लगाते ही उसे खाली कर डाला! फिर दूसरा, उसके बाद तीसरा; योही आठ-दस प्याले शराब के जय उसने खाली कर डाले तो लवगलता ने हाथ की बोतल दूर फेंक दी और अपनी जनानी पोशाक के दूर करते ही वह मदनमोहन बन गई!!!
पाठक! यह वास्तव में मदनमोहन ही थे! यहां पर यह बात जान लेनी चाहिए कि लवगलता के हीराझील के अन्दर जाने के समाचार को सुनकर कुमार मदनमोहन कई आदमियों के साथ मुर्शिदाबाद की ओर रवाने हुए थे, जिसका हाल हम कह आए है। इधर उस दुःखिनी स्त्री से लवंगलता ने अपना सारा हाल कह सुनाया था और यह भी कहा था कि, "सम्भव है कि मुझे खोजते हुए मदनमोहन यहां पर आवें।" सो, वह स्त्री भेस बदलकर दिनभर सारे शहर मे घूमा करती और रात को लवंगलता से मिलती थी। इसी प्रकार कई दिनो के गश्त लगाने पर उसने मदनमोहन को पा लिया और उनके आने का समाचार लवगलता को दिया।
उस स्त्री पर न जाने क्यो लवगलता पूरा भरोसा करने लग गई थी, इसलिये उसकी बात पर उसे पूरा विश्वास हुआ और चट उसने मदनमोहन को एक पत्र लिखा, जिसका आशय यह था कि,—"मैं यहां पर कैद हूं, यदि आप मेरा उद्धार किया चाहते हैं तो इस विश्वाली स्त्री के साथ, जहां यह ले जाय, जाइए, और जो कुछ यह कहे, विना आपत्ति किए, उसे करिए।"
मदनमोहन लवंगलता के अक्षरों को भली भांति पहचानते थे, अतएव उसकी चीठी पाने से उन्होंने उस अनजान स्त्रीपर विश्वास किया और उसके साथ, जहां वह लेगई, अपने साथियों के संग वे चले गए। कई दिनो तक उन सभी को वह स्त्री एक निरापद स्थान में छिपाए हुई थी, फिर अवसर देखकर वह सभोंको उस