पृष्ठ:लवंगलता.djvu/६८

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झाड़ी में ले गई और वहां से मदनमोहन को लाकर उसने लवंगलता के साथ उनकी भेट करा दी, जिसका हाल हम लिख आए है।

लवंगलता से मिलने पर उस स्त्री के सारे रहस्य की मदनमोहन ने जाना और तब उन्होंने उस स्त्री के परामर्श के अनुसार ही सारी कार्रवाइयो का करना निश्चय किया।

कल रात को मदनमोहन लवगलता से मिले थे। उन्हे महल में लाकर वह स्त्री फिर उसी झाड़ी में पहुंची और वहा पर मदनमोहन के जितने साथी थे, उन सभी को उसी भांति वह महल में ले आई और सभोको उसने उसी सुरग मे छिपा रक्खा। मदनमोहन भी वहीं पर रातभर और दूसरे दिन, दिनभर छिपे रहे। फिर उसी स्त्री की राम्मति के अनुसार वे लवगलता का स्वांग बने। इसके अनन्तर जो कुछ हुआ था, उसका हाल तो हम अभी ऊपर लिख ही आए है।

निदान, स्त्री का भेष छोड़ जन्न मदनमोहन अपने असली रूप में परिणत हुए तो सिराजुद्दौला बड़े जोर से चीख मार उठा, पर उसकी आवाज उस कमरे के बाहर न गई। बात की बात मे मदनमोहन ने सिराजुद्दौला की छाती पर चढ़कर उसके हाथ-पैर बांध डाले। इतने ही में सारे शरीर को बोरके से छिपाए हुए वही स्त्री कमरे के अन्दर आई और उसने उस कमरे के सब दर्वाजों के खटक इसलिये बन्द कर दिए, कि जिसमे बाहर से कोई व्यक्ति नव्वाव की चिल्लाहट सुनकर भीतर न आवे।

इतना हो चुकने पर मदनमोहन ने सिराजुद्दौला को अपना परिचय दिया। इतने ही मे लवंगलता भी वहा पर आ गई और उसने सिगजुद्दौला का मुंह चिढ़ाकर कहा,—' अरे, बेवकूफ़! तूने अपने उन बीसो नमकखारो को जाने नाहक ली। उन बेचारो ने मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ा था और न उन सभी ने तेरे साथ नमकहरामी ही की थी! अरे पागल! अन्धे नबाब! क्या तू समझता था कि मैं तुझपर आशिक हूं! छि! छि! मैं तुझपर थूकती भी नहीं! हां, मैं अपने निकास होने का मौका बेशक ढूंढ रही थी, इसीलिये बेवकूफ! मैंने तुझे वह कब्जबाग दिखलाया था! ख़ैर, अब मैं रुखसत होती हूँ और इतना तुझे चिताए जाती हूं कि अगर