सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:लवंगलता.djvu/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
७२
आदर्शवाला।


जो किसीकी गाढ़े समय में भलाई करता है, परमेश्वर उसकी भलाई करने से कदापि नही चूकता। सो, जिस लवंगलता के फंसाने का बीज बोकर सैय्यद अहमद ने अपने तई आप बंधन मे फसाया था, उस (लवग॰)का उद्धार करके ही नगीना ने अपने अयोग्य पति का उद्धार करना स्थिर किया था।

लवंगलता से मिलकर नगीना ने अपना सारा हाल कह सुनाया था और उसके छुड़ाने में जान लड़ाकर सहायता करने की पूरी पूरी आशा दी थी। यही कारण था कि नगीना ने लवंग को अपनी मुट्ठी में कर लिया था और उसके द्वारा अपने कार्य के उद्धार करने में वह तत्पर हुई थी।

पाठकों को समझना चाहिए कि लवंगलता ने जो सिराजुद्दौला से झूठ-मूठ चुगली खाकर नजीर आदि बीसों आतताइयो के सिर कटवा डाले थे, उस कार्रवाई की मूल कारण नगीना हीथी, क्योकि उसने लवंग को इस तरह अपने हाथ में कर लिया था कि जितना वह लवंग से कहती, वह उतना ही करती थी। यद्यपि व्यर्थ बीस यवनों के सिर कटने से लवंग मन ही मन बहुत ही दुखी हुई थी और इस बात को उसने नही समझा था कि इसका परिणाम यह होगा; पर नगीना इस कार्रवाई के इस भयंकर परिणाम को अवश्य सोच चुकी थी, इसलिये उसने ऐसी चाल चली कि सिराजुद्दौला ने अपने कई चतुर मुसाहबो को खो दिया, जिससे नगीना को अपनी कार्रवाई पूरी करने के मैदान में किसी प्रकार की रुकावट न रह गई।

कंगन और पुरजे की बात लवंगलता से सुनकर नगीना ने इस बात का निश्चय कर लिया था कि,—'अब यदि वह कगन दैवसंयोग से मदनमोहन के हाथ लग जाय तो निश्चय है कि वे लवंग के छुड़ाने के लिये यहां अवश्य आवेगे।' यह सोचकर वह ऊपर ही ऊपर उनकी टोह लेने लगी। आखिर, एक दिन उसे मदनमोहन के आने और मीरजाफ़र के यहा छिपकर रहने का पता मिल गया। तब उसने अकेले में मदनमोहन से मिलकर उनपर अपने तई लवगलता की हित-चाहनेवाली प्रगट किया और लवंगलता की चीठी उन्हें देकर अपनी ओर से उनका जी भर दिया। फिर तो वह अघमर देकर एक दिन मदनमोहन और उनके साथियों को जिस