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[तेरहवां
लवङ्गलता।

ढंग से महल के अन्दर ले गई थी, उसका हाल हम लिख आए है।

महल में जाने के पहिले मदनमोहन ने मीरजाफ़र से ठीक मुकाम पर घोड़े इत्यादि को ठीक कर रखने की ताकीद करदी थी, जिस ठिकाने को नगीना ने मदनमोहन को बतलाया था। इसके बाद वे नगीना के साथमहल के अन्दर गए थे और इस बात के न जानने से कि,—'हम किसके साथ महल के भीतर जाते है,'उन्होने मीरजाफ़र से एक किसी विश्वासी दासी के साथ महल के अन्दर जाना बतलाया था। यद्यपि मीरजाफ़र ने ऐसा साहस करने से मदनमोहन को बहुत रोका, पर लवंगलता के हाथ के लिखे पत्र पर उन्हे भरोसा था, इसलिये वे बेखटके नगीना के साथ महल में घुस गए थे।

सिराजुद्दौला के नज़ीर आदि कई नामी मुसाहबो के मारे जाने से बाकी के मुसाहब अपने प्राण के भय से हीराझील से भाग गए थे, इसलिये यहां पर इन दिनो सन्नाटा रहता था, जिससे नगीना को अपनी मनमानी कार्रवाई करने का अच्छा अवसर मिला और इसीलिए तो उसने लवगलता के द्वारा वैसा भयानक काम करा ही डाला था!

निदान, फिर तो मदनमोहन ने लवंगलता का स्वांग बनकर जो कुछ किया था, उसका वृत्तान्त हम लिख आए है, और यह बात भी कह आए हैं कि लवगलता का उद्धार कर नगीना किस भांति अपने शौहर सैय्यद-अहमद को जेल से छुडाकर भागी थी।

अब इस उपन्यास में सैय्यद-अहमद, वा नगीना, अथवा उनकी शेष जीवनी के विषय में कुछ न लिखा जायगा कि उन दोनोकी बाकी की जिन्दगी क्योंकर बीती! किन्तु हां, उस कार्रवाई का हाल हम यहां पर अवश्य लिखेगे जो कि नगीना ने चलती बेर की थी।

नगीना ने वहांसे भागने के समय एक लौंडी को एक बंद लिफ़ाफ़ा देकर यह कहा था कि,—' मुबह के वक्त जब लुत्फ़-उन्निसा बेग़म सोकर उठे, तो उसे यह खत देदिया जाय।' निदान, ऐसा ही हुआ और लुत्फ़उन्निसा ने बडे तडके उठकर जब उस पत्र को पाया और खोलकर उसे पढ़ा तो वह बहुत ही चकित हुई और तुरन्त उठकर वह उसी गोल कमरे मे पहुंची, जिसमे लवंगलता लाकर रक्खी गई थी, किन्तु वहां जाकर उसने सिराजुद्दौला