उसे अगरेज़ो से मिलाया, पर उन लोगों ने इस मामले में अमीनन्द का लगाव समझा और उनकी या सिराजुद्दौला के दूत की बातों पर कुछ भी ध्यान न दिया।
निदान, जब वह आदमी अपना सा मुंह लेकर खाली हाथ झुलाता लौट आया तो फिर सिगजुद्दौला ने झल्ला कर एक दूत भेजकर अंगरेजों को यो धमकाया कि,—'तुम कलकत्ते में किले की मजबूती मत करो; इस बात पर भी अगरेजो ने कुछ ध्यान न दिया। तब तो सिराजुद्दौला का खून जोश में आया, उसके क्रोध की आग भड़क उठी और उसने लडाई का बहुत अच्छा बाहाना पा लिया। पहिले कासिमबाज़ार-वाली अगरेजों की कोठी उसने जप्त करली और फिर उन्हे कलकत्ते के किले मे जा घेरा। वहा पर उस समय गोरे सिपाही सौभी नथे और किले के बचने की कोई भी आशान थी। यह उपद्रव देख,बहुत से अगरेज ताड़े क साहब गवर्नर के साथ जहाज और किश्तियो पर सवार होकर वहासे निकल भागे और जो बेचारे बेखबरी मे किले के अन्दर रह गए. वे दूसरे दिन कैद होकर सिराजुद्दोला के सामने लाए गए, उनमे किले के अफ़सर हालबेल साहब भी थे, जिनकी मुश्के बधी हुई थी। सिराजुद्दौला ने उनकी मुश्के खुलवा दी और कहा,—'ख़ातिरजमा रक्खी, तुम्हारा जरा भी नुकसान न हाने पावेगा।' किन्तु रात के समय जब गोरे कैदियो के रखने के लिये कोई मकान न मिला तो सिराजुद्दौला के नौकरो ने एक सौ छियालिस (१४६) अगरेजो को एक ही कोठरी मे, जो केवल अठारह फुट लवी और चौदह फुट चौडीशी, बद कर दिया।[१] उस सांसतघर में जो कुछ उन लैदी पेचारों के जी पर बीता होगा, उसे ये ही अमागे जानते होगे! उनमे कितने घायल थे, बहुतेरे शराब के नशे मे प्यास से ब्याकुल थे और कई मलमूत्रादि के बेग के रोकने से बहुत ही बेचैन थे।
निदान, सबेरे जब उस कालकोठरो का दर्वाजा खोला गया तो एक सौ छियालिस गारो मे से केवल तेईस गोरे जीते निकले,
सो खुर्दो से भी गए बीते थे! उनमे से हालबेल साहब सिराजुद्दौला
- ↑ इस कोठरी का ना म अंगरेज़ो ने Black hole अर्थात् कालीबिल रक्खा है।