पृष्ठ:लालारुख़.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनबन (केवल विवाहित बालिरा पति-पत्नियों के लिए) आचार्यजी जैसे उद्भट तेजस्वी लेखक हैं---वैसे ही यशस्वी चिकित्सक भी हैं। इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में उन्होंने अपने चालीस वर्ष के अनुभवों के आधार पर पति-पत्नी की अनबन के कारणों और उन्हें दूर करने के उपायों को वैज्ञानिक रीति पर सरल भाषा में बताया है। विवाह के तुरन्त बाद ही प्रायः पति-पत्नियों में अनबन हो जाती है और उनका सारे जीवन का सुख और प्रेम जल-भुनकर खाक हो जाता है। इस घातक और गम्भीर 'अनबन' को आचार्यजी रोग कहते हैं। इसका कारण सामाजिक नहीं--शारीरिक बताते हैं। वे गत २२ वर्षों से 'अनबन' वाले जोड़ों की सफल चिकित्सा करते रहे हैं। इस पुस्तक में इसी अत्यावश्यक रोग का कारण और इसकी सुलभ एवं वैज्ञानिक चिकित्सा वर्णित है। पुस्तक प्रत्येक पति-पत्नी के लिए चाहे वे किसी भी आयु के क्यों न हों पढ़ने के योग्य है। पुस्तक मिलने का पता- चतुरसेन गृह, सी० २२॥११ कबीरचौरा, बनारस ।