पृष्ठ:लालारुख़.djvu/११७

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मौत के पंजे में जिन्दगी की कराह पुस्तक में लेखक के क्रोध को धधकती घाला है। सर्वथा मौलिक, क्रान्तिकारी और नवीन विचार धारा। पुस्तक में कुल सत्रह अध्याय हैं- १-या तो मनुष्य मनुष्य को खाय या भूखा मर -‘देश खुनी देवता। ३-राष्ट्रीयता' मनुष्य के खून के गारे से खड़ी की गई इमारत ! ४-स्वाधीनता' गुलामी की आवाज ! ५~~'धर्म' योची का कुत्ता। ६- 'ईश्वरर घिसा पैसा। ६-देवता ईश्वर के भाई-भतीजे। 'श्रद्धा' अन्धी बुढ़िया । (~-'दार्शनिक अल के आशिक मजनू। १०-'विज्ञान' मनुष्य का मुक्किंदात्ता या मृत्युदूत । ११-~-'स्त्री' जिन्दा दौलत । २२-'गणराज्य जनता का खून चूसने वाला खटमल । १३- साहित्य दिमागी दुराचार । १४-'मनुष्य' गान्धी का अपूजित देवता। १५---'सत्य' जनतन्त्र की सीधी राह । १६--- "अहिंसा सत्य की राह दिखाने वाली पथदर्शिका । १७- युद्ध का देवता मर गया। पुस्तक मिलने का पता--- चतुरसेह गृह, सी० २२।११ कबीरचौरा, बनरास ।