पृष्ठ:लालारुख़.djvu/१५

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बालारुख "शाहजादी, हम जो कुछ कर रहे हैं, उसका अंजाम क्या होगा। शाहजादा जब यह भेद जान लेंगे, तो हमारी जान की खैर नहीं । मुझे अपनी जरा परवा नहीं, पर आपको उस प्रलय में मैं न देख कूगा" "श्रोह इब्राहीम; शाहजादे बहुत उदार हैं, वह समझते होंगे मुहब्बत में किसी का जोर जुल्म नहीं चलता। वह हमें माफ कर देंगे। "नहीं शाहजादी, वह तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं मा न करेंगे। "तो इब्राहीम, मैं खुशी से तुम्हारे साथ मरूँगी। क्या तुम मौत से डरते हो । "नहीं दिलरुबा, और खासकर इस प्यारी मौत से "तो फिर यह राज क्यों पोशीदा रक्खा जाय, शाहजादे को लिख दिया जाय" "ये तमाम ठाट बाट हवा हो जायेंगे।" "उसकी परवाह नहीं, तुम मेरे सामने बैठकर इसी तरह गाया करना, मैं तुम्हारे लिए रोटियाँ पकाया करूँगी" "प्यारी शाहजादी। बेहतर हो, इस गुलाम को भूल जाओ" "ऐसा न कहो, यह कलमा सुनने से दिल धड़क "तो फिर तुम्हारा क्या हुक्म है ।" "शाहजादे को मैं सब हकीकत लिख भेजूंगी।" "तुम क्यों, यह काम मैं करूँगा, फिर नतीजा चाहे भी जो हो।