पृष्ठ:लालारुख़.djvu/१८

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"इब्राहीम के गिरफ्तार होने की खबर आग की तरह शाह- जादी के लश्कर में फैल गई। शाहजादो ने सुना, तो पागल हो गई । खाना पीना छोड़ दिया। सवारी तेजी के साथ आगे बढ़ने लगी। ज्यों ज्यों कश्मीर नजदीक आता था, सजावट और स्वागत की धूमधाम बढ़ती जाती थी। परन्तु शाहजादी बदहवास थी। शहर में उसका बड़ी धूमधाम से स्वागत हुआ। और, जब महल के फाटक में उसकी सवारी घुसी, तो उस पर हीरे मोती बखेरे गए। शाहजादी ने पका इरादा कर लिया था कि ज्यों ही वह शाहजादे के सामने पहुँचेगी, उसके कदमों पर गिर कर इब्राहीम की जान बख्शी की भाख मांगेगी। "शाहजादा जड़ाऊ तख्त पर बैठा शाहजादी के स्वागत करने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके बगल में एक दूसरा जड़ाऊ तख्त शाहजादी के लिए पड़ा था। शाहजादी ने ज्यों ही हवादान से पैर निकाला, शाहजादा उसे देखकर अवाक् रह गया। बिखरे बाल, मलिन वेश, सूखा और पीला चेहरा और सूजी हुई आँखें। शाहजादी ने आंख उठाकर शाहजादे को नहीं देखा, वह आगे बढ़कर तख्त के नीचे जमीन पर लोट गई। उसने शाहजादे के पैर पकड़ कर कहा "क्षमा, जमा ओ उदार शाहजादे क्षमा शाहज़ादे ने कहा "उठो शाहजादी, तुम्हारे लिए सब कुछ किया जा सकता है, यह तुम्हारा तख्त है, इस पर बैठो »