पृष्ठ:लालारुख़.djvu/२२

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7 चतुरसेन की कहानियाँ रहा था, मगर ऐसा मालूम होता था कि अब और तेज चलना असम्भव है। कहारों में एक बूढ़ा कहार था, उसका हाल बहुत ही बुरा हो रहा था। कुछ क़दम और चल कर वह ठोकर खाकर गिर पड़ा, पालकी रुक गई। तातारी बाँदियाँ झिमक कर खड़ी हो गई। अकसर ने घोड़ा बढ़ाया। बूढ़ा अभी सँभला न था। एक चाबुक सपाक से उसकी गर्दन और कनपटी की चमड़ी उधेड़ गया। साथ ही बिजली की कड़क की तरह उसके कान में शब्द पड़े-उठ, उठ, ओ दोजख के कुत्ते ! देर हो रही है। कहार ने उठने की चेष्टा की, पर उठ न सका। वह गिर गया। गिरते ही दस-वीस, पञ्चीस-पचास चाबुक तडातड़ पड़े, खून का फवारा छूटा और कहार का जीवन-प्रदीप बुझ गया !! लाश को पैर की ठोकर से ढकेल कर अफसर ने खनी ऑख भीड़ पर दौड़ाई । एक गठीला गौरवर्ण युवक मैले और फटे बस्न पहने भीड़ में सबसे आगे खड़ा था। मुश्किल से रेखें भीगी होंगी। अफसर ने डपट कर उसे पालकी उठाने का हुक्म दिया। युवक आगे बढ़ा । दूसरे ही क्षण सपाक से एक चाबुक उसकी पीठ पर पड़ा और साथ ही ये शब्द-साला, जल्दी ! युवक ने क्रुद्ध स्वर में कहा-जनाब ! हुक्म बजा लाता हूँ, मगर जबान सँभाल xxx दस-बीस चाबुक खाकर युवक वहीं तड़प कर गिर गया। उसकी नाक और मुंह से खून का फवारा बह चला। अफसर ने और एक आदमी को कन्धा लगाने का हुक्म दिया। क्षण भर में पालकी फिर अपनी राह लगी।