पृष्ठ:लालारुख़.djvu/५३

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सोया हुआ शहर किन है कि इस खराब ख्वाब का बादशाह सलामत पर कोई अच्छा असर पड़े। "उम्मीद तो नहीं है मगर-- "तो फिर हज़रत हमारी तमाम तैयारियाँ मुकम्मिल हैं। ख्वाजासरा मौत्तरिम खाँ, खलील बेग, जुलकदर, फिदाई खाँ, मीर तुग़लक हमारे साथ हैं ! खानखाना और उसके बेटे दक्खिन से हमारी मदद को आ रहे हैं।" "तब देर करना फिजुल है। अब्दुल अजीज को पैगाम लेकर बादशाह सलामत के पास भेज दिया जाय और अपने तमाम उज़रत अर्जी में लिख दिये जाँय " "बेहतर, मैं आज ही उसे रवाना कर दूंगा, हां शाही हरा- वल का सरदार अब्दुल्लाह भी हमसे मिला हुआ है। वह शाही लश्कर का कच्चा चिट्ठा हमें भेज रहा है, और बदले में झूठे सच्चे किस्से गढ़कर वादशाह को सुना देता है। बादशाह उस पर यकीन कर लेते हैं।" “पर मेरा मुद्दा तो सिर्फ यही है कि बेगम का असर सल्त- नत पर न रहे। मैं हज़रत सलामत खिलाफ आवाज उठाना नहीं चाहता।" "हम लोग भी यही चाहते हैं, हजरत शहजादा !" "तो फिर जैसा ठीक समझिये कीजिये। हाँ, ताजमहल कहाँ है ? अगर इजाजत हो तो मैं उसे यह तोहफा नज़र किया चाहता हूँ। मैं ताज को प्यार करता हूँ और चाहता हूँ, वह आपकी कोशिशों से हिन्दुस्तान की मलिका बने " उसने कोमती मोत्तियों का हार वृद्ध के हाथों पर रख दिया। "शाहजादा, इससे ज्यादा खुशकिस्मती और क्या हो सकती