पृष्ठ:लालारुख़.djvu/५४

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, चतुरसेन की कहानियाँ है। इसने ताज को आवाज़ दी, और वह नीची गर्दन किरे आ खड़ी हुई। वृद्ध ने कहा, "बेटी, ये हजरत शाहजादा खुर्रम हैं, इन्हें कोरनिश करो, ये तुम्हें यह तोहफा दे रहे हैं।" ताज ने दबी नज़र से देखा तो उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गई। उसका दिल बांसों उछलने लगा। एक चीख उसके मुंह से निकलते निकलते रह गई। उसने काँपते हाथों से हार ले लिया। शाहजादा ने मुस्करा कर उसकी तरफ देखा। फिर बूढ़े से कहा, "ता मेरा आज ही रात का फॅच है और अब मुझे तैयारी करना है। वे उठ खड़े हुये और चल दिये। ताजमहल जड़वती देखती रह गई । वह सोच रही थी, या खुदा खुर्रम और यूसूफ एक ही हैं। “चारी ताज, मुझे बिदा दो, और खुदा से दुआ करो कि सुखरू होकर लौटूं।" "मगर आप बड़े बेदर्द हैं, बड़े छलिया हैं, आपने मुझे ठगा क्यों ? "प्यारी ताज, मात करो, मगर मैंने तुम्हें कहा न था कि तुम शाहजादा पर रीझ कर गरीब यूसुफ़ को भूल जाओगी।" "प्राह अगर तुम वही यूसूफ होते।" "और शाहजादा खुर्रम होने में क्या हर्ज है दिल रूबा।" शाहजादा के महल में मुझ जैसी हजार होगी, के लिये तो मैं एक ही थी। 'ओह, यह न कहो ताज जिन्दगी सलामत है तो ता कया- मत तुम्हें प्यार करूँगा, मरने तक और मरने के बाद भी। दुनिया इस प्यार का सबूत देखेगी और देखती रहेगी। मगर